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अफसाने मेरी कलम के | newsforum

©राहुल सरोज, जौनपुर, उत्तर प्रदेश


 

मेरी कलम के अफसाने बहुत है।।

फ़ुरसत में मिल तो सही,

तुझे सुनाने बहुत है।।

कभी ये दर्द लिखती है,

कभी तराने प्यार के।।

मैं भी हैरां हूं देखकर,

लिखने को इसको बहाने बहुत है।।

मेरी कलम के अफसाने बहुत है।

 

मुझको मुझसे जोड़ती है।

ये मुझे झकझोरती है।

आवाज़ बनकर ये मेरी,

खामोशियों को तोड़ती है।

करती मेरी इतनी फिकर के,

एकपल ना तन्हा छोड़ती है।

मैं तो ठहरा नासमझ सा,

पर ये दुनियां को जाने बहुत है।

मेरी कलम के अफसाने बहुत है।

 

करना चाहें जो सरारत,

ये मुझे रोकती है।।

होता मैं मायूस जो,

मेरे आंसू भी पोछती है।।

रहती मेरी सदा साया है बनकर,

ये मुझे माने बहुत है।

मेरी कलम के अफसाने बहुत है।


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