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बुरे समय की आंधियां | newsforum

©प्रियंका सौरभ, हिसार, हरियाणा

रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस, कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार

 


 

तेज प्रभाकर का ढले, जब आती है शाम !

रहा सिकन्दर का कहां, सदा एक सा नाम !!

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उगते सूरज को करे, दुनिया सदा सलाम  !

नया कलेंडर साल का, लगता जैसे राम !!

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तिनका-तिनका उड़ चले, छप्पर का अभिमान !

बुरे समय की आंधियां, तोड़े सभी गुमान !!

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तिथियां बदले पल बदले, बदलेंगे सब ढंग !

खो जायेगा एक दिन, सौरभ तन का रंग !!

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पाकर भी कुछ ना मिले, होकर जिम्मेवार !

कितना धोखेबाज है, सौरभ ये किरदार !!

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प्रेम दिया या दर्द हो, सबका है आभार !

जीवन पथ पर है तभी, मिला मुझे विस्तार !!

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हम पत्तों को सींचते, पर जड़ है बीमार !

सौरभ कैसे हो बता, ऐसे वृक्ष सुधार !!

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