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कोरोना के कहर में ब्लैक फंगस एवं व्हाइट फंगस का जहर | Newsforum

©डॉ. कान्ति लाल यादव, सहायक आचार्य, उदयपुर, राजस्थान

परिचय : शिक्षा– एमए, नेट, पीएचडी, बीईडी, एलएलबी, डीएलएल, बीजेएमसी, भागीदारी– 9 अंतर्राष्ट्रीय एवं 30 राष्ट्रीय संगोष्ठी में पत्र वाचन, शोध लेखन -35 शोधलेख, आलेख, कविताएँ, कहानियां विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, दो काव्य संग्रह, एक कहानी संग्रह तथा 4 अन्य पुस्तकें प्रकाशनरत, सम्मान– 4 राष्ट्रीय एवं 8 अन्य सम्मान प्राप्त।


 

कोरोना का रौद्र रूप जैसे-जैसे कम होने लगा इधर ब्लैक फंगस जैसे नए रोग ने तीव्र गति से भारत के कई राज्यों में अपना आतंक मचाना शुरू कर दिया है। इसे कहते हैं सिर मुंडाते ही ओले पड़ना। ब्लैक फंगस को चिकित्सकीय भाषा में ‘म्यूकर माइकोसिस’ कहा जाता है। यह कोरोना रोगियों में ज्यादातर देखने को मिल रहा है। जिन कोरोना रोगियों को स्टेरॉयड ज्यादा दी गई है, उनमें ब्लैक फंगस बढ़ने का खतरा ज्यादा बताया जा रहा है। इस बीमारी का पता सीटी स्कैन से लगाया जा सकता है।

 

ब्लैक फंगस से लड़ने के लिए ‘एम्फोटेरिसिन’ नामक ड्रग्स का प्रयोग किया जा रहा है। यह रोग उन कोरोना मरीजों में ज्यादा फैलने का खतरा है जिनमें रोगियों में इम्यूनिटी की मात्रा बहुत ही कम है तथा दूसरी बीमारियों से पूर्व में ग्रसित हैं।

 

ब्लैक फंगस के लक्षण

 

तेज सिर दर्द, बुखार, नाक में म्यूकस के साथ खून, नाक बंद होना, खांसी, खांसते समय बलगम में दर्द, उल्टी में खून आना, आंखों में सूजन एवं धुंधला दिखाई देना या दिखना बंद होना आंखों और नाक के आस पास दर्द होना, लाल निशान एवं चकत्ते दिखना गाल की हड्डी में दर्द होना चेहरे पर सूजन होना मसूड़ों में तेज दर्द होना और दांतों का हिलना, आंखों से ब्रेन तक घातक दुष्प्रभाव फैला रहा है।

 

ब्लैक फंगस के दुष्प्रभाव

 

ब्लैक फंगस के दुष्प्रभाव से पीड़ित के आंखों की रोशनी चली जाती है। मधुमेह रोगियों को इस बीमारी का ज्यादा खतरा है। इस बीमारी में मरीज को ‘एम्फोटेरिसिन इंजेक्शन’ लगाया जाता है। शुरुआती दौर में इस रोग को एंटीफंगल दवाओं से ठीक किया जा सकता है किंतु लापरवाही करने पर जनधन की हानि होने की संभावना अत्यधिक बढ़ जाती है। फंगस प्रकृति में पाया जाता है जो इसके संपर्क में आता है उसके लिए यह घातक है किंतु इसका फैसला बहुत कम मात्रा में होता है। किंतु वर्तमान में कोविड-19 की वजह से यह रोग फैल रहा है। स्वास्थ्य सेवा देने वाले स्वास्थ्य कर्मियों के सामने यह एक चुनौतीभरा कार्य है। तो कोरोना के रोगियों के सामने एक नई आफत।

 

फंगल इटीयोलॉजी का पता लगाने के लिए केओएच टेस्ट और माइक्रोस्कॉपी की मदद लेने की जरूरत को समझे और तुरंत इलाज को शुरू कर देना चाहिए। जिससे इस रोग से मुक्ति मिल जाती है। राजस्थान सरकार ब्लैक फंगस के मरीजों के लिए अस्पतालों में अलग से वार्ड की व्यवस्था करवा रही है तथा चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना में शामिल किया है। जिससे ब्लैक फंगस के मरीजों का योजना में बीमित होने पर 5 लाख तक का नि:शुल्क इलाज हो सके।

 

राजस्थान सरकार ने कोरोना के बाद ब्लैक फंगस को महामारी घोषित किया है। आईसीएमआर ने इसे घातक बीमारी माना है तो हरियाणा सरकार ने ब्लैक फंगस को ‘अधिसूचित रोग’ घोषित किया है। राजस्थान सरकार ने इसके इलाज की दरें भी तय कर दी है। इसके इलाज में ज्यादा वसूली करने वाले चिकित्सालय पर महामारी एक्ट के तहत कार्रवाई की जाने की बात भी कही है। राजस्थान सरकार ने सर्वप्रथम इस रोग हेतु  कड़े कदम उठाते हुए एनएबीएच अधिकृत अस्पतालों में सामान्य मरीजों के लिए 5500 रुपए प्रतिदिन, गंभीर रोगियों को आईसीयू में रखने पर 7500 रुपए और वेंटिलेटर पर रखने पर 9000 रुपए प्रतिदिन का खर्च तय किया है और सरकारी अस्पतालों में नि:शुल्क इलाज किया जाएगा यह घोषणा की है।

 

एम्स के डायरेक्टर डॉ.रणदीप गुलेरिया का कहना है की म्यूकोर माइकोसिस रोग मधुमेह,कोविड पॉजिटिव और स्टेरॉयड लेने वाले रोगियों में संभावना ज्यादा है। उनका यह भी कहना है कि म्यूकोर माइकोसिस बीजाणु मिट्टी, हवा और यहां तक कि भोजन में भी पाए जाते हैं लेकिन वे कम विषाणु वाले होते हैं और आमतौर पर संक्रमण का कारण नहीं बनते हैं। इस प्रकार के मामले पहले बहुत ही कम थे किंतु कोविड-19 इस रोग की वजह से बढ़ोतरी हो रही है।

 

ब्लैक फंगस से कोरोना मरीज कैसे बच सकते हैं

 

यदि वे खून में शुगर की मात्रा को अधिक नहीं बढ़ने दे और हाइपरग्लाइसेमिया से बचें। स्ट्रॉयड के प्रयोग में समय और डोज का ध्यान रखें। कोरोना मरीजों के स्वस्थ हुए लोग अपने ब्लड ग्लूकोज का ध्यान रखें। एंटीफंगल और एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल चिकित्सक के परामर्श से ही करें। ब्लैक फंगस एवं वाइट फंगस के लक्षणों का पता चलते ही इलाज शुरू कर दें। स्वच्छता का पूर्ण ध्यान रखा जाए तो काफी हद तक बचा जा सकता है।

 

ब्लैक फंगस के बाद अब व्हाइट फंगस

 

हाल ही में अब ब्लैक फंगस के बाद व्हाइट फंगस भी आ गया है। जिसे चिकित्सकीय भाषा में इसे ‘कैंडिडा’ कहते हैं। जो रक्त के माध्यम से शरीर के प्रत्येक अंग को प्रभावित करता है। हाल ही में बिहार में व्हाइट फंगस के 4 मामले सामने आए हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार व्हाइट फंगस को ब्लैक फंगस से ज्यादा घातक बताया जा रहा है। यह फंगस त्वचा, पेट, गुर्दा, मस्तिष्क, फेफड़ों में और मुंह को प्रभावित करता है। इस तरह स्वास्थ्य सेवा पर दोहरी मार पड़ने की स्थिति आ रही है तो कोविड-19 परमाणु विखंडन की भांति अनेक रूप में अपने विकृत रूप से जनता की जान ले रहा है। इन सब दुविधाओं को निपटने के लिए जनता स्वयं को जागृत होना, सजग होना, अपनी स्वयं की स्वास्थ्य- रक्षा करना अति आवश्यक है। एसे विकट समय में चल रही दवाइयों और ऑक्सीजन की कालाबाजारी का खेल कम नहीं हो रहा है ऐसे समय में सरकार मजबूत कदम उठाकर कालाबाजारी करने वालों को सक्त्त कार्रवाई करने में कोई कोताही न बरतें।


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