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खून से लथपथ खोपड़ियां लगती हैं जैसे | newsforum

©सरस्वती साहू, बिलासपुर, छत्तीसगढ़


 

खून से लथपथ खोपड़ियां लगती हैं जैसे

खुद की चिंता हमें अब चिता बना रही है जैसे

उन्माद में हम सही दिशा को चल नहीं पाते

राह में फिर ठोकरें सह नहीं पाते

इस कदर अभिमान हमको ढीठ बनाता है

फिर ऊँचाई से वही हमको गिराता है

देखो अभिमान सबको जकड़ता है कैसे

फिर खून से लथपथ खोपड़ियां लगती हैं जैसे

मुख से शब्दों के तीर चलाया है

न जाने कितनों का दिल दु:खाया है

पाप की गठरी ढोये है कैसे

खून से लथपथ खोपड़ियां लगती हैं जैसे

कुछ शान पाने को पैसा लुटाया है

उस मान में हकीकत कुछ न पाया है

बस देखा है अपने शान पर झूठी तालियां बजती है कैसे

खून से लथपथ खोपड़ियां लगती हैं जैसे

ईश्वर रूप है माँ, बाप सेवा की नहीं लगन से

अब क्यों डर रहे अपनी बुढ़ापे की मरण से

खुद का बोझ बाजुओं में उठाये कैसे

खून से लथपथ खोपड़ियां लगती हैं जैसे

हाथ में जब हमारा था जीवन देने को दे न पाये

समय कम है कहकर बहाने, मदद कर न पाये

बीत गया वो पल तो समझ आया है जैसे

अब खून से लथपथ खोपड़ियां लगती हैं जैसे …


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