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धुंधली याद | Onlinebulletin

©द्रौपदी साहू (शिक्षिका), कोरबा, छत्तीसगढ़


 

मुझे धुंधली सी याद है। मैं प्राथमिक कक्षा में पढ़ रही थी। ठंड का मौसम था। उस समय हमारे गांव में मेला लगा हुआ था। हम सभी बहुत खुश थे, यह सोचकर कि हमारे गांव में मेला लगा है, हम लोग भी मेला देख पाएंगे और झूला झूल पाएंगे। एक दिन मेरी सहेलियां मुझसे कहती हैं- पैसे लेकर आना, मेला देखने चलेंगे!

 

मेरे पास पैसे नहीं थे और मैं सहेलियों को हां कह दी थी। उस दिन पहली बार मैंने पिताजी के जेब से बिना पूछे 50 रूपये निकाल लिए और अपनी सहेली के घर चली गई और सहेलियों के साथ मेला देखने गए। मेले में झूला झूले और कुछ चना-चाट खाये। इस तरह सारे पैसे मैंने मेले में फिजूल खर्च कर दिए।

मेले से लौटने के बाद मैं सहेलियों के साथ खेलने लगी। तभी पिताजी अपने जेब को देखते हैं लेकिन उसमें से पैसे गायब थे। वे गुस्सा होते हैं और घर में सब से पूछते हैं- किसने मेरे जेब से पैसे निकाले? घर में सभी कहते हैं- हमने नहीं निकाले कोई पैसे! मैं घर से बाहर थी। मुझे बुलाने के लिए बहन को भेजे, बहन मेरे पास जाकर बोली- पिता आपको बुला रहे हैं!

 

मुझे डर लगने लगा क्योंकि मैंने गलती की थी और बिना पूछे चुपचाप उनके जेब से पैसे निकाल लिए थे। मैं घर गई। पिताजी मुझसे पूछे- कहां है मेरे जेब के पैसे? मैं चुप थी क्योंकि गलती की थी। पिताजी मेरे पास आए और मेरे कनपटी पर दो थप्पड़ लगाए और बोले- चोरी करना सीख गई है। बिना बताए फिजूल खर्च के लिए पैसे निकाल ली! आज के बाद दोबारा करेगी ऐसा काम!

 

मैं रोते-रोते बोली- आज के बाद कभी भी ऐसा काम नहीं करूंगी! पहली बार मैंने बिना बताए पैसे निकालने की गलती की थी। इसके बाद मैंने कभी भी ऐसी गलती नहीं की। यदि उस दिन मेरे पिताजी मुझ पर गुस्सा नहीं किए होते, मारे नहीं होते तो शायद मैं फिर से वहीं काम करती और सहेलियों के साथ फिजूल खर्च में पैसे बर्बाद करती और धीरे-धीरे यह मेरी गंदी आदत बन जाती।

 

बड़ों के गुस्से में भी प्यार छिपा होता है। उनका गुस्सा और मार हमारी गलती को सुधारने के लिए होता है। न कि हमें नुकसान पहुंचाने के लिए! इसलिए बड़े जब हम पर गुस्सा करते हैं, तो हमें उनका जवाब गुस्से में न देकर या बदला न लेकर अपनी गलती स्वीकार करके उसे सुधारने का प्रयास करना चाहिए।

 


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