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बुंदेलखंड मोर पहिचान | ऑनलाइन बुलेटिन

©अब्दुल रहमान बाँदवी

परिचय- बाँदा, उत्तर प्रदेश


 

 

कहत हवैं कि बुन्देली भाषा ब्रज भाषा के ज्यादा नजदीक हवै,

उन्नीसवीं शताब्दी तक उत्तर-मध्य भारत मा अग्रणी साहित्यिक भाषा रही हवै।

 

या बुंदेली भाषा भारत केर एक विशेष क्षेत्र मा बोली जात हवै,

यहके कई ठो अइसिन शब्द हवैं जिनका बंग्ला व मैथिली वाले समझ सकत हवैं।

 

या हमार भाषा केर लोकगीत बहुत मशहूर हवैं,

बुन्देली भाषा मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश केर कई जिलन मा ब्वालत हवैं।

 

कहत हवैं कि बुंदेली केर महतारी शौरसेनी अउर बाप संस्कृत हवै,

दोनों भाषान में जन्मैं के बाद बुन्देली भाषा क्यार जन्म भा हवै।

 

बुंदेलखंड केर पाटी पद्धति मा सात स्वर तथा 45 व्यंजन हवैं,

यह केर शुरुआत ओना मासी घ मौखिक पाठ से प्रारंभ भे हवै।

 

जउन बोली झाँसी, पन्ना, सागर मा ब्वालत हैं व ठेठ बुंदेली कहावत हवै,

जउन विदिशा, रायसेन, होशंगाबाद मा ब्वालत हैं व क्षेत्रीय बुंदेली कहावत हवै।

 

जउन भाषा रहत क्षेत्र केर वहै भाषा का समझत रहवासी हवैं

भइया बुन्देलखंड के हइन तबहिन कहलावें बुन्देलखंड वासी हवैं।

 

तरह-तरह केर बोली अउर भाषा बुन्देलखंड़ौ मा बोली जात हवै,

जो जहाँ का रहवासी वा व्हइन के भाषा तव अक्सर ब्वालत हवै।

 

चित्रकूट धाम हिन्दू संस्कृति का धार्मिक स्थल जउन कहावत हवै

पान जउन पूरे प्रदेश मा मचावत तहलका व महोबा से निकरत हवै,

 

मातृभाषा बुंदेलखंड केर भाषा मोर पहिचान व जन्म-स्थान बाँदा हवै,

“रहमान बाँदवी” केर जिला मा केन नदी से मशहूर शज़र पत्थर निकरत हवै।

 

 


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