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छत्रपति शिवाजी महाराज | ऑनलाइन बुलेटिन

©रामकेश एम यादव

परिचय- मुंबई, महाराष्ट्र.


 

छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती पर विशेष….

!! शत -शत नमन!!

 

जन्म हुआ सोलह सौ सत्ताईस में,

मां जिसकी जीजाबाई थी ।

शिवनेरी के उस किले में,

खूब बजी बधाई थी ।

घर-घर दीपक जगमगा उठे,

रजनी भी हुलसायी थी ।

क्या नारी, क्या नर, क्या बच्चे,

शिवाई भी हर्षायी थी ।

झूम उठी थी धरती अपनी,

झूम उठा था यह आकाश ।

झूम उठी थी पर्वत मालाएँ,

झूम उठा था सूर्य-प्रकाश ।

दूब, पल्लव, फूल, कलियाँ,

नाची थी गुलशन की गलियाँ ।

चाँद – सितारे झूम रहे थे,

झूम रही थी नभ में परियाँ ।

अजब समां था खुशियाली का,

मावलों ने धूम मचाई थी ।

शिवाजी के जन्मदिन पर,

शहाजी बधाई भेजी थी ।

दिन बदला, बदली ऋृतुएँ,

और शिवा कुछ बड़ा हुआ ।

पराधीनता की बू से,

चेहरा उसका लाल हुआ ।

 कुश्ती लड़ना, किला तोड़ना,

घोड़ा दौड़ाना आता था ।

तीर चलाना, भाला फेंकना,

शिवा को खुब भाता था ।

राम-कृष्ण की पावन गाथा,

शिवा को याद जुबानी थी ।

कोंणदेव की न्याय की बातें,

सपने में भी आती थीं ।

रायरेश्वर के पावन मंदिर में,

तब करने-मरने की ठानी ।

मावले बोले देख शिवा,

हम देंगे अपनी जवानी ।

मर जाएँगे, मिट जाएँगे,

हम अपना लहू बहाएँगे ।

मातृभूमि की खातिर हम,

अपना शीश कटाएँगे ।

देख मावलों को रोमांचित,

शिवा ने तब प्रण किया ।

हिन्दवी स्वराज्य बनकर रहेगा,

ऐसा उसने संकल्प लिया ।

बम-बम, हर-हर महादेव की,

मावलों ने जयकार किया ।

जय भवानी, जय अंबे से

शिवा ने आशीर्वाद लिया ।

शौर्य, वीरता से भरा हुआ,

मराठों का खूब घराना था ।

रणकौशल, अदम्य साहस,

जैसे उनका खजाना था ।

तोरण किले पर आक्रमण करके,

स्वराज्य का डंका बजा दिया ।

तानाजी मालुसरे ने उस पर

भगवा झंडा फहरा दिया ।

नगाड़ों और तुरहियों से,

सह्याद्रि घाटी गूँज गई ।

तोरणाजाई देवी की,

दुआएँ शिवा को मिल गई।

कुछ अर्से के बाद शिवा ने,

अफजल खाँ का खून किया ।

आदिलशाही झुककर तब,

शिवाजी से संधि किया ।

जात-पाँत से ऊपर उठकर,

शिवाजी की सेना थी ।

मुगलों की ताकत को वह,

तलवारों पर तौली थी ।

हिन्दू-मुस्लिम दोनों को

शिवा समान समझता था ।

दीन-धर्म के नाम पर,

भेद न मन में लाता था ।

महाशक्ति यह मुल्क बने,

वह सदियों पहले सोचा था ।

राह में रोड़ा बनने वालों को

तलवारों से रोका था ।

सन् सौलह सौ अस्सी में

यह भारत का सूरज डूब गया ।

असंभव को संभव करके,

क्रांति का बिगुल बजा गया ।

भारत का वह गौरव था,

भारत का वह वैभव था ।

हिन्दवी स्वराज्य का शिल्पकार,

वह तो जैसे भैरव था ।

आज देश फिर घिर रहा है,

चहुँ ओर एटमी-तूफानों से ।

करना होगा इसका शमन,

हरेक के अरमानों से ।

ऐसे विष के घूँट को हमको,

मिलकर पीना होगा ।

अक्षुण्ण रहेगी भारतमाता,

तब सुखमय जीवन होगा ।

आओ मिलकर आज शपथ लें,

कभी न टूटने देंगे देश ।

छत्रपति शिवाजी जैसा,

हम भी बचाएँ फिर यह देश ।।


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