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चॉकलेट दिवस l ऑनलाइन बुलेटिन

©नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़, मुंबई


 

तुम….. हाँ ….. तुम…..,

चॉकलेट की तरह हो,

जो मुँह में आते ही,

पिघलने लगता है।

 

उसके पिघलन की मिठास,

दिल व दिमाग़, मीठी करती है।

कुछ पल मानो,

मूँद कर आँखे,

ये आती – जाती साँसे,

मिठास, महसूस करती हैं।

 

ये मिठास हमारे मुहब्ब्त का आग़ाज़ है।

प्रेम तरंग की नई साज़ है।

 

चॉकलेट की मिठास,

धीरे-धीरे पिघलने लगती है।

मानों कुछ बून्द, आसमाँ से,

उतरने लगती है।

ज़ायका ही पूरा बदल जाता है।

धीरे-धीरे जब ये पिघल जाता है।

 

वो आखरी सी मिठास जब,रह जाती है।

धीरे-धीरे साँसों में उतर आती है।

लबों से लगती है, कभी ज़बाँ पे आती है।

मुहब्ब्त का माहौल खुशनुमा बनाती है।

 

बस यहीं,

 

अब ठहर जाने को जी चाहता है।

इसी मिठास में, सारी उम्र रह जाने को जी चाहता है।

इसी मिठास में, सारी उम्र रह जाने को जी चाहता है।


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