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मेरे देश के हालात | Newsforum

©प्रीति बौद्ध, फिरोजाबाद, उत्तर प्रदेश

परिचय- एमए, बीएड, समाज सेविका, प्रकाशन- विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचना प्रकाशित, सम्मान- C .F. M . Writers Asociation Asqnol Best Bangal.


 

 

मेरे देश के हालात इस कदर बेकार हो गए,

बाजार नहीं मगर श्मशान गुलजार हो गए।

 

था वादा उनका लाएंगे अच्छे दिन,

देखो व्यापार भी यहां बेजार हो गए।

 

डॉलर की शान सितारों तक पहुंच गई,

रुपये अब डॉलर के चौकीदार हो गए।

 

मांगें रोजगार तो कहलाते हैं हम देशद्रोही,

बिन ग्राहकों के खत्म सभी व्यापार हो गए।

 

सुने नहीं कोई जन की पीड़ा बने हैं हम उनके लिए कीड़ा

शासन-प्रशासन निर्दोषों पर लाठी-डंडों की मार हो गए ।

 

कोई भूख से मर रहा यहां तो कोई तानाशाही से,

जो थे सच के साथी मीडिया भी चाटुकार हो गए।

 

बने अब साधु-साध्वी भी मंत्री और व्यापारी यहां,

कमा खाने वाले दो जून की बेहद लाचार हो गए।

 


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