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कुंडलिया; नारी | ऑनलाइन बुलेटिन

©सरस्वती राजेश साहू

परिचय– , बिलासपुर, छत्तीसगढ़


 

 

 

नारी के हर रूप में, है देवी का वास।

करूणा शक्ति साधना, रचती है इतिहास।

रचती है इतिहास, खोल दो पन्ने सारे।

चढ़ती है आकाश, तोड़ लाती है तारे।

समझो मत नादान, देख ले महिमा भारी।

क्या करती है काम, जगत में आगे नारी।

 

नारी -नारी सब कहे, नारी गंगा धार।

पावन करती है धरा, जोड़ रखे परिवार।

जोड़ रखे परिवार, नींव वो बनकर प्यारी।

करती गृह का काज, बोझ को ढोती सारी।

देती जीवन दान, भगाती दुख लाचारी।

स्वर्ग बने संसार, श्रेय तो जाती नारी।

 

नारी के गुणगान को, गाते प्रेम प्रभात।

है जीवन संसार में, यह सबको नित ज्ञात।

यह सबको नित ज्ञात, वही कहलाती जननी।

कभी संगिनी साथ, कहीं पर प्यारी वहनी।

सरला बनकर प्यार, लुटाती नित अवतारी।

वंशज है संसार, बढ़ाती कुल को नारी ।


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