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प्रेम की परिभाषा | Onlinebulletin

©पुष्पराज देवहरे भारतवासी, रायपुर, छत्तीसगढ़

परिचय- कविता, कहानी लेखन में रुचि, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन, शिक्षा- स्नातक.


 

 

प्रेम शब्दविहीन

जीने की एक आशा है

 

यह एक खूबसूरत

एहसास है दो दिलों का

 

यही प्रेम की

परिभाषा है ||

 

प्रेम का न कभी

मोल होता है

प्रेम का न ही कभी

तौल होता है

 

प्रेम देन है प्रकृति का

जो सदा अनमोल होता है

 

प्रेम बंधन है दो दिलों का

मिटाती मजहबो की हताशा है

यही प्रेम की परिभाषा है

 

प्रेम निराकार, मन को

भाव विभोर कर देने वाला है

जो करे मन से प्रेम कभी

न भुलाने वाला है

 

प्रेम फूलों की बगिया है

जो महकाये जग सारा

प्रेम बिना कुछ नहीं

लगे जग अँधियारा

 

प्रेम जीवन की एक अभिलाषा है

यही प्रेम की परिभाषा है

 

 

प्रेम मांग नहीं, अर्जित है

प्रेम के लिये सब – कुछ समर्पित है

प्रेम मोतियों की माला है

टूटने पर पुनः न जुड़ने वाला है

 

 

प्रेम स्नेह, भावनाओं

विचारों का का मिश्रण है

जिसे मिलकर बनता

मजबूत आकर्षण है,,

 

 

प्रेम संघर्ष है जो हर

परिस्थिति में एक

दूसरे का साथ दे

प्रेम जिद है पाने की

मुश्किल को भी मात दे,,

 

 

त्याग और बलिदान है प्रेम

जीवन का आधार है

प्रेम निःस्वार्थ प्रतिमूर्ति

बिना प्रेम जीवन बेकार है,,

 

 

प्रेम जीने आस जगाये

और मिटाये निराशा है

यही प्रेम की परिभाषा है ||


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