दिवाली आयी क्या | Onlinebulletin
©ललित मेघवाल, निम्बाहेड़ा, चित्तौड़गढ़, राजस्थान
बाजार की रौनक देख
आँखे भर आयी
क्यों?
अरे भाई लगता ही नी
दिवाली आयी l
पहले जब दिवाली आती थी
सज जाते दीप कतारों में
एक गरीब की दिवाली भी
खुशियों से भर जाती थी
तो अब क्या हुआ?
बदल गया जमाना
दीप बुझने लगे
लाखों के मकान आज
लड़ियों से सजने लगे
वो रौनक अब कहां रही
ये पश्चात्य संस्कृति
उसे भी निगल गयी
वो आज भूखा रहा
उसका एक भी दीपक बिका नहीं
महीन मिट्टी गोंधकर
बड़े प्यार से बनाया था
जिसे तुम मिट्टी का
दीप समझते हो
एक गरीब की आँखों में
उसने आशाओं का
दीप जलाया था l
तू भी दोषी में भी
दोषी हूँ इसमें
भला क्यों?
तू और मैं भी इसी
समाज के तो पलड़े हैँ
चल छोड़ जमाने को
हम तो दीपक ही लेते हैँ …