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कहनी और करनी में फर्क | ऑनलाइन बुलेटिन

©द्रौपदी साहू (शिक्षिका), कोरबा, छत्तीसगढ़ 

परिचय- जिला उपाध्यक्ष- अखिल भारतीय हिंदी महासभा.


 

ऑनलाइन बुलेटिन | कहने और करने में बहुत फर्क होता है। कहने को तो लोग कुछ भी कह जाते हैं, पर करने को कहा जाए तो अपनी ही बात से मुकर जाते हैं। कलयुग अब घोर कलयुग होता जा रहा है। जहाँ इंसान को परखना बहुत मुश्किल है। इस घोर कलयुग में इंसान सोचता कुछ है! कहता कुछ है ! और करता कुछ है ! सभी भिन्न होते हैं ! यह भी विश्वास करना दुष्कर हो जाता है कि यह वही इंसान है !

 

इस कलयुग में लोग बड़ी-बड़ी बातें करते हैं और इस कदर अपनी बात रखते हैं कि लोग उन पर विश्वास करने लगते हैं। लोग उनसे उम्मीद रखने लगते हैं लेकिन जब उन बातों पर अमल करने की बारी आती है, तब वहीं लोग अनजान बनते हैं। पहाड़ तोड़ने की बात करने वाले वास्तव में पहाड़ तोड़ते नहीं और जो वास्तव में पहाड़ तोड़ने वाले होते हैं! वे ऐसी बात करते नहीं ! लेकिन लोग कहने वाले पर विश्वास करते हैं। वो भी आँख बंद करके!

 

“कहो वहीं जो कर सको”, वरना मौन ही रहना उचित है। कम से कम लोगों को आपसे उम्मीदें तो नहीं रहेंगी। जब कोई किसी के लिए अच्छा कहता है तो सामने वाले को उसकी बातें अच्छी लगती है और वह सोचता है कि वो सच कह रहा है और न जाने एक ही पल में कितनी उम्मीदें और कितनी आस ले बैठता है। कहने वाले की बातें उसके मस्तिष्क में ऐसे चलती रहती है कि वह आगे क्या करेगा ? क्या नहीं करेगा? मन ही मन इसका निर्धारण करने लगता है लेकिन समय आने पर जब सच्चाई पता चलती है, तब उसकी सारी उम्मीदें और सारी आस टूट जातीं हैं और वह खुद भी टूटने लगता है।

 

सच कहाँ है इस दुनिया में ? सारी दुनिया झूठी लगती है! लोग झूठे! लोगों की बातें झूठी! किस पर यकीन करें? लोग तो किराए पर भी झूठ बोलते हैं! ऐसे लोगों को किसी की फिकर कहाँ होती है। वे सिर्फ अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं।

 

इंसान हो ज़रा इंसानियत भी निभाओ! जैसे आप हो ! वैसे सभी हैं! अपनी कथनी और करनी में फर्क न रखो! बल्कि “कहो वहीं जो आप कर सकते हैं” जो कर नहीं सकते उन बातों को कहना उचित नहीं! किसी को झूठी उम्मीद दिला कर अपना कथन वापस ले लेना या अपनी बात से मुकर जाना उसके लिए दुखदाई सिद्ध होता है इसलिए मन, वचन और कर्म से किसी के लिए दुखदाई न बनें।


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