.

दीया | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©बिजल जगड

परिचय- मुंबई, घाटकोपर


 

 

इश्क की दास्तान खामोश है ज़बान क्या कहें,

ग़म का तूफान सीने में दबा रखा है क्या कहे।

 

मुझे आज़मा रहा है कोई रुख बदल बदल कर,

इस दिल पर हज़ार इल्ज़ामात है, क्या कहें।

 

चाहा था तुम्हें मेरे लिए यही इल्ज़ाम बहुत है,

बस है, यही गम-ओ-आलम अब और क्या कहें।

 

एक बादल बहुत ही रोया, आंख अश्कों से भरी,

है चाहतों की ये बारिश क़हर सितम क्या कहें।

 

इक दीया छोटा सा मेरे नाम, कर लिया करना,

सिलसिला है रूह तक इल्हाम का क्या कहें।

 

ये भी पढ़ें:

निर्झर जैसी | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

जीवन में कर गए उजाला | ऑनलाइन बुलेटिन
READ

Related Articles

Back to top button