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ख्वाबों की उड़ान | newsforum

©ललित मेघवाल, निम्बाहेड़ा, चित्तौड़गढ़, राजस्थान 


 

 

जूँझता हूँ कभी खुद से

तो कभी मन के विकारों से टकराता हूँ

स्वयं की खोज में उलझता ही जाता हूँ

 

झांककर देखता हूँ जब भी

दिल के कोने में

तब सोचता हूँ क्या मतलब है

मन ही मन रोने में

 

जब खुद ही ना समझ पाता हूँ

कभी मन की व्यथा

तो पराये क्या समझेंगे मेरी

आपबीती कथा

 

फिर भी बुलंद करके हौसले

ख्वाबों की उड़ान भरता हूँ

कटे हुए पंखों में भी फिर से

एक जान भरता हूँ

 

समझकर भी मौन रहता है जमाना

ये बात जानता तो हूं

पर फिर भी हर किसी पर विश्वास कर

सबको अपना मानता हूँ

 

अपनों से नाराज हो जाता हूँ पर

खुद झुककर रिश्ता बचाता हूँ

मैं तो लालित्य अनुराग हूँ

जो घुलता है शीतल कर देता हूँ

 

काश समझाता कोई मेरे भाव

कोई होता मेरा भी महताब

काश होती तारों भरी रात

हीर और रांझा का लगाते अलाव …


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