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सबकी चाहत | Onlinebulletin

©द्रौपदी साहू (शिक्षिका), कोरबा, छत्तीसगढ़

परिचय- गाइडर जय भारत इंग्लिश मीडियम हाई स्कूल, जिला उपाध्यक्ष- अखिल भारतीय हिंदी महासभा.


 

आधुनिक परिवेश में अधिकांश लोग शिक्षित हो चुके हैं, किन्तु शिक्षित होने के बाद भी उनकी सोच पुरानी है, पुराने ख्याल, पुरानी सोच होने के कारण, वे अपने विचार नहीं बदल पाए। जब तक हमारे विचार नहीं बदलेंगे, हमारा समाज कैसे बदलेगा? हमसे समाज है! न कि समाज से हम! आज भी सबकी चाह बेटा पाने की है।

 

बेटी का तो जन्म ही होने नहीं देते! गर्भ में ही उसे मार डालते हैं! यदि जन्म हो भी गया, तो नदी में फेंक देते हैं, तो कहीं लावारिस छोड़ देते हैं, नहीं तो मजबूरी में उसका पालन-पोषण करते हैं। बेटी होना या स्त्री होना क्या इतना बड़ा गुनाह है? जो उसके साथ ऐसा व्यवहार किया जाता है। आज बेटियां हर काम को करने में सक्षम हैं, फिर भी लोगों को बेटा ही चाहिए, क्योंकि बेटी तो पराई होती है! लेकिन यह भी सोचिए कि आप भी दूसरे घर की बेटी अपने घर लाए हैं।

 

चाहे वह आपकी माता हो, पत्नी हो या बहू! यदि बेटी नहीं चाहिए, बेटा ही चाहिए तो ब्याह के लिए बेटी क्यों ढूंढते फिरते हो? वह भी सुंदर, पढ़ी-लिखी! बेटी को सुंदर बनाने और पढ़ाने-लिखाने में आपने ही कमी की है। फिर क्यों सर्वगुण संपन्न बेटी ढूंढते फिरते हो?

 

अपनी बहू से बेटे की चाह रखने वाली सास भी तो एक बेटी ही है। फिर अपनी ही स्त्री जाति के लिए ऐसी दुर्भावना क्यों है? बेटी के जन्म पर अप्रसन्नता और घृणा क्यों है? बेटी और बेटा में भेदभाव क्यों है? खान-पान से लेकर, पढ़ाई-लिखाई, पहनने के कपड़े तक, इन सब चीजों के लिए बेटा-बेटी में फर्क किया जाता है।

 

जरा सोचिए बेटी नहीं होगी, तो आपको पूछेगा कौन? आपकी सेवा कौन करेगी? बेटी के बिना आपका घर, घर कैसे बनेगा? परिवार पूरा कैसे होगा? बेटी के बिना बहन, बुआ, सास, बहू, भाभी,चाची, दादी, नानी ये रिश्ते कहां बनेंगे? फिर भी सबकी चाह है बेटा पाने की! बेटे के जन्म होने पर लोग खुशी से प्रफुल्लित होते हैं और उसका स्वागत बहुत ही धूमधाम से करते हैं। बड़े होने पर बेटे की हर इच्छा पूरी करते हैं, किंतु बेटी की इच्छा, इच्छा ही रह जाती है। एक दिन बेटा भी पराया हो जाता है। अपने माता-पिता को छोड़ कर चला जाता है। उसके बुढ़ापे का सहारा भी नहीं बनता, फिर भी लोगों को बेटे से ही ज्यादा प्यार होता है। और बेटे की ही चाह होती है।

 

समय के साथ-साथ अपनी सोच भी बदलिए। आज बेटियां हर क्षेत्र में बेटों से भी आगे हैं। बेटे की चाहत में बेटी की कुर्बानी न दीजिए। प्रकृति के नियमानुसार चलिए और भ्रूण हत्या जैसा पाप न कीजिए। बेटी हो या बेटा सहर्ष स्वीकार कीजिए और दोनों को समान अधिकार और सम्मान दीजिए और दोनों को स्नेह कीजिए, वरना एक दिन ऐसा आएगा कि बेटी के लिए तरस जाओगे।


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