पिता का आसरा | ऑनलाइन बुलेटिन
©दीपाली मिरेकर
परिचय- विजयपुरा, कर्नाटक
पिता है तो घर आंगन में है खुशियाली,
पिता के कंधों पर है
घर परिवार की जिम्मेदारी।
क्यूं अक्सर ऐसा होता है?
मां के ममता के समकक्ष
पिता का प्रेम अनदेखा हो जाता है।
दुनियादारी का पाठ सिखाने
गुरु बन जाता है पिता,
बच्चों के भविष्य का शिल्पी बनता है पिता,
फिर क्यूं पिता का प्रेम
अपराध लगाता है अपनों को??
उसकी सख्ती में तो छिपी है
बच्चों के भविष्य की चिंता।
कभी बनता घर परिवार का चौकीदार,
कभी बनता है सौरक्षक,
एक नही सारे किरदार है निभाते
यह पिता सिर्फ पिता नहीं वरदान बनकर
बच्चों का जीवन है सवारते।
हाथ जब थाम लेती हूं पिता का
लगाता है सारी दुनियां है मेरी मुठ्ठी में
कंधे पर बिठाकर
संसार की सैर करवाता है पिता
जिन्दगी का सही पथ दिखाता है पिता।