उत्सव के दिन आ रहे हैं | Onlinebulletin
©सुरेन्द्र प्रजापति, गया, बिहार
परिचय– शिक्षा- मैट्रिक पास, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं एवं कहानियों का प्रकाशन.
उत्सव के दिन आ रहे हैं
हृदय में एक मिठास घुल रहा है
वह अपना पीड़ा को भूल रहा है
उमंग के उजास में,
दीप जगमगा रहे हैं
वह मलिन भूखा लड़का
वह दीन-हीन लाचार उसका बाप
वह बर्तन मांजती स्त्री
भाग्य को कोसती, उसका सन्ताप
उम्मीद की अंजुली से
समवेत स्वर में कर रही लक्ष्मी का आवाहन
ममता के ताप पर किलकारियों को सजाती
आत्मदीप को थोड़ा सा उर्जावान बनाती
लार टपकाते बच्चे को कर रही आलिंगन
कि इस दीपावली में खिलौने खरीद दूंगी
बाजार से तुम्हारे बप्पा लाएंगे मिठाई,
मंगल दीप जलाएंगे
सब मिलकर खुशी मनाएंगे
बच्चा भूख को भूल स्वप्न बुनता है
मन के उदासी में उजास चुनता है
उसकी नर्म खिलखिलाहट,
दिशा में गूंजता है
आज जगमगाएगी रात, वह सिर धुनता है
दिशाएं ज्योतिर्मय हुआ, स्वर मचला
मंगल आरती पूजन का मन्त्र दहा
कुछ की मनी दिवाली, कुछ के कट गए,
परम्परा की जय हो, कुछ गुदड़ी में बंट गए।