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नफरतों की आग | ऑनलाइन बुलेटिन

©देवप्रसाद पात्रे

परिचय– मुंगेली, छत्तीसगढ़


 

 

 

ये नफरतों की आग

सीने में क्यों धधकती हैं?

रिश्तों में कडुवाहट की

बीज क्यों पनपती हैं?

रिश्तों के धागे इतने

कमजोर क्यों होने लगते हैं?

अपने पराये और पराये

अपने क्यों होने लगते हैं?

ये बेपरवाह गलतियां,

पार करती हदें

घर घर के बीच

नफरतों की सरहदें

अपनो से है ये कैसी तकरार

अपने लगे दुश्मन गैरों से प्यार

जिंदगी जीने की आस का

टूटती उम्मीदें विश्वास का

बिखरते रिश्ते, दम घुटती जिंदगियां

अपनों से ही यूँ ही लुटती जिंदगियां

ये नफरतों की दीवार

सीने से आर-पार

फिर आशाओं के दीप सीने में

क्यों सुलगती है??

अंधेरों में उम्मीदों की किरण

क्यों चमकती है??

अपने हैं तो सपने हैं,

सपने हैं तो जिंदगी।।

इन सपनों को नए प्यार दो।

और रिश्तों को सँवार दो।।

सुलगते चिंगारी को सीने में दबा दो।

और रिश्तों को प्रेम के गहनों से सजा दो।

 

 


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