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पहली झलक | ऑनलाइन बुलेटिन

©नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़

परिचय– मुंबई, आईटी सॉफ्टवेयर इंजीनियर.


 

 

पहली झलक में, चाँद को फ़लक से उतरते देखा।

सूरज की तपिश थी, चाँदनी को पिघलते देखा।

 

हया के रंग में डूबकर वो बेहद हसीन नज़र आई,

नज़र जब मिली नज़र से, शर्म से पलकें झुकाई।

 

न जाने किस ख्यालों में मैं खोता चला गया,

समन्दर की मस्त रवानी में डुबोता चला गया।

 

हाथों को मिलाने जो बढ़ा दिया हाथ।

बोलकर नमस्ते, छोड़ दिया वहीं साथ।

 

तलाशते रहे, फिर वो नज़र न आई।

पहली झलक थी जो आज भी भूले न भुलाई।

 

ख़्वाबों औऱ ख्यालों में दस्तक उसी की है,

तकिया लिपटता है सीने से, फिर एक झलक उसी की है।

 

चाँद को देखूँ तो मुझे मेरा ही चाँद नज़र आता है।

कल की ख़बर नहीं पर आज मुझे बहुत भाता है।


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