मंजिल की आवाज़ | Newsforum
©राहुल सरोज, जौनपुर, उत्तर प्रदेश
आवाज देकर छुप गया है कोई,
भटक रहा हूं उसी की तलाश में,
कभी यादों में खोजता हूं,
कभी किताबों में खोजता हूं,
जिये जा रहा हूं उसे पाने की आस में।
मेरा वजूद तो नहीं है वह,
फिर भी उसे पाने की ज़िद है,
रूठा बेसक नहीं है वो,
फिर भी उसे मनाने की ज़िद है,
लगा है वो मुझे आजमाने के प्रयास में,
अनजाने ही सही दिल दुखाने के प्रयास में।
अब दर्दे सितम की परवाह किसे है,
जो राह उसने चुनी,
वही अब मेरी भी राह है।
निकल पड़ा हूं बस इसी उम्मीद में,
पा लूंगा उस मंज़िल को एकदिन,
जो दिखती भी नहीं मेरी नसीब में।।