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फागुन के चार दिन | ऑनलाइन बुलेटिन

©सरस्वती राजेश साहू

परिचय– , बिलासपुर, छत्तीसगढ़


 

बसंत ऋतु और फागुन का रंग सोने में सुहागा होता है जो प्रकृति और प्राणी के संबंधों में चार चाँद लगा देते हैं। यह आनंदित और आह्लादित करने वाला मधुमास सभी ऋतुओं में श्रेष्ठ है इसलिए इसे ऋतुराज भी कहते हैं।

 

फागुन के चार दिन… जो उत्साह और उत्सव का संगम है मनुष्य जाति को भाईचारा और प्रेम की शिक्षा देते हुए प्रकृति के आनंदमयी वातावरण से जोड़ते हैं। लोग प्राचीन काल से ही फागुनी पर्व अर्थात होली को मनाते आ रहे हैं। होली के एक दिन पूर्व अधर्म रूपी गंदगी या होलिका का दहन कर धर्म रूपी प्रेम, सादगी और स्वच्छता के विजय पर्व होली को प्रकृति के सातरंगों के साथ तथा सात मधुर सुरों के माधुर्य ध्वनि में हर्षादित होकर मनाते हैं।

 

प्रकृति की सुंदरता इन दिनों में देखते ही बनती है पेड़ -पौधे अपने पीले पत्तों को त्याग कर नये कोमल पत्तों को धारण करती है। पलास के वृक्ष की सुंदरता तो मंत्रमुग्ध कर देने वाली होती है उनके लाल पुष्प मानो धरा को दुल्हन की तरह श्रृंगारमयी बना देती है। सरसों के पीले पुष्प जैसे अवनि पर हल्दी मल रहे हों। इस बीच फागुन के चार दिन…प्रकृति तथा वातावरण में नवजीवन, नव उमंग और सभी को प्रफुल्लित कर देने वाली नव माधुर्य एहसासों से भर देता है।

 

यहीं कुछ अपभ्रंशादित तत्व या असामाजिक व्यक्तियों द्वारा इस पावन और सुखद पर्व को दूषित कर असमता और अव्यवहार्यता का परिचय देते हैं जिससे वातावरण तथा जीव मात्र में अव्यवस्था स्थापित होने लगता है और कई समस्याएं उत्पन्न होती है। जिनमें नशा का अत्यधिक प्रयोग, कर्कश ध्वनि का वादन, केमिकल युक्त गीले -सूखे रंगों का प्रयोग, निर्दोष जानवरों का वध, मादक व माँसाभक्षण कर दुष्कर्म जैसे कृत्यों को कर अशांति और असंतुलन स्थापित करते हैं। जिसे मात्र जागरूकता और समझदारी से ही दूर किया जा सकता है और करना ही होगा अन्यथा यह पावन पर्व के नाम के लिए ही पर्व कहलायेगा और वास्तविक उद्देश्य और उम्मीद से भटक जायेगा।

 

फागुन के चार दिन…बड़े मन भावन होते हैं इसलिए इसे सतर्कता से मानव को प्रकृति, प्राणी से एक दूसरे से प्रेम और सौहाद्रता से मनानी चाहिए। इसी में इस पर्व की सार्थकता है।


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