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आजादी | Newsforum

©डॉ. कान्ति लाल यादव, सहायक आचार्य, उदयपुर, राजस्थान


 

आजादी ने सबको बदला है। जीने की आजादी, बोलने की आजादी, रहने की आजादी। बिना रोक-टोक के पहनने की आजादी। कुरीतियों,अन्याय का विरोध करने की आजादी। मनचाहे धर्म को अपनाने की आजादी। बावजूद इसके स्वतंत्रता के 75 वर्षों के बाद भी जातिवाद, धर्मवाद, क्षेत्रवाद रूढ़िवाद, नस्लवाद के मायने नहीं बदले हैं।

 

भ्रष्ट्राचार, आतंकवाद, गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, मुनाफाखोरी की जैसी जघन्य समस्याएं देश में कम नहीं हुईं हैं। लंबे संघर्ष के बाद देशभक्त वीरों की कुर्बानियों से हमें गुलामी से मुक्ति मिली। जिनकी कथाएं, कहानी आज किस्से बनते जा रहे हैं। सिर्फ आजादी के पर्व पर झंडा फहराना, आजादी के नगमें सुनना, सांस्कृतिक कार्यक्रम कर इतिश्री करना ही मात्र देश भक्ति नहीं है, बल्कि आज देश की आजादी की कीमत को देश का प्रत्येक नागरिक समझें।

 

देश के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करें और भारत के संविधान की रक्षा करें तथा सम्मान करें। “देश के संकट में देश का साथ” सिद्धांत का साथ दें। आज देश की आधी आबादी (नारी) को सही मायने में आजादी नहीं मिल पा रही है। वह शोषण, अत्याचार, बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों का शिकार हो रही है। तो वहीं देश में दलित अपने बराबरी की आजादी के लिए संघर्षशील हैं।

 

आज भी दलित दूल्हे को घोड़ी से उतारा जा रहा है, कहीं मंदिरों से धकेला जा रहा है। देश का आदिवासी जल – जंगल – जमीन की लड़ाई लड़ रहा है। देश की अर्थव्यवस्था डगमगा रही है। गरीब और गरीब तथा धनवान और धनवान बन रहा है। शिक्षा, योग्यता पैसों के बूते बिक रही है। निजीकरण चारों और मुंह फैला रहा है।

 

आजादी के बारे में गांधीजी का सपना था कि “समग्रता में सामाजिक निर्माण का था जिसमें अंतिम आदमी के आंसू पोंछने का था।” वह अभी अधूरा ही है। मात्र कुछ हद तक सफल हुए हैं तो बहुत पाना अभी बाकी है। सफलता की मंजिल अभी भी बहुत दूर है।


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