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मानवता के शिखर पुरुष गौतम बुद्ध | Newsforum

©डॉ. कान्ति लाल यादव, सहायक आचार्य, उदयपुर, राजस्थान्र


धरती पर समय-समय पर मानवता की बिगड़ी हालत को संवारने के लिए महान आत्माओं का जन्म होता रहा है। गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में शाक्य गणराज्य की तत्कालीन राजधानी कपिलवस्तु के निकट लुंबिनी (नेपाल) में हुआ था। कहा जाता है कि गौतम बुद्ध का जन्म, ज्ञान प्राप्ति एवं मोक्ष (महापरिनिर्वाण) तीनों घटनाएं वैशाखी पूर्णिमा के दिन ही हुई थी। यह कितनी अद्भुत घटना है। उनके पिता का नाम शुद्धोधन एवं माता का नाम महामाया था‌। जन्म से 7 दिन बाद उनकी माता का देहांत हो गया और उनकी मासी गौतमी ने पाल पोसकर उन्हें बड़ा किया था। गौतम बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था। सिद्धार्थ अर्थात् वह जो सिद्धि प्राप्ति के लिए जन्मा हो।

 

गौतम गोत्र में जन्मे होने की वजह से उन्हें गौतम कहा जाता है। गौतम बुद्ध बचपन से ही दयालु थे। अपने चचेरे भाई देवदत्त के द्वारा घायल हंस की उन्होंने रक्षा की थी। उनका विवाह 16 वर्ष की उम्र में यशोधरा के साथ करवा दिया था। कुछ दिन उपरांत पुत्र राहुल का जन्म हुआ। उनके पिता ने उनके लिए समग्र रूप से विलासिता की जिंदगी जीने का भरपूर प्रबंध की किया। एक दिन रथ पर वे नगर में घूमने निकले तो उन्हें एक अत्यंत कृष बूढ़ा आदमी मिला, दूसरी बार उन्हें एक बदहाल रोगी मिला और तीसरी बार उन्होंने एक अरथी देखी जिसे चार लोग उठा कर ले जा रहे थे और उनके परिजन विलाप कर रहे थे। इन तीन घटनाओं ने उन्हें बहुत विचलित किया। बुढ़ापा, बीमारी और मौत। चौथी घटना में उन्हें एक सन्यासी दिखाई दिया जो संसार की सारी विरक्ति से मुक्त था। मस्त था। जिसे उन्हें प्रभावित किया।

 

29 वर्ष की उम्र में वे ज्ञान की प्राप्ति हेतु घर से निकल पड़े थे और गृह त्याग कर दिया। बोधि वृक्ष (गया) कि नीचे 12 वर्षों तक ध्यान मग्न रहे तब उन्हें बोध (ज्ञान) की प्राप्ति हुई और तब से वे गौतम बुद्ध कहलाए। तब उनकी उम्र 40 वर्ष की थी। ज्ञान प्राप्ति के बाद बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश सारनाथ में दिया था। जिसे “धर्म चक्र प्रवर्तन” कहा जाता है। अपनी तप, साधना से ज्ञान प्राप्त कर समाज में फैली धर्म -अव्यवस्था पर, आडंबर पर, नारी दुर्दशा पर, शूद्र के अत्याचार पर अपनी ज्ञान की तार्किकता से अज्ञान रूपी काले धुएं के आवरण को हटा कर एक नया मानवता का मार्ग दिखलाने का महान कार्य किया। उन्होंने 40 वर्ष तक उपदेश देने का काम किया व एक दिन में 20 से 30 किलोमीटर पैदल चलते थे। गौतम बुद्ध का कहना था कि धर्म वह जो सबके लिए ज्ञान के द्वार को खोल दें और कर्म में नैतिकता को स्थान दें। जिसमें दया, करुणा और मैत्री का होना अति आवश्यक बताया।

 

उन्होंने मनुष्य का महत्व जन्म पर आधारित न होकर कर्म पर बताया। उन्होंने कभी अपने को ईश्वर नहीं बताया। उनके द्वारा चलाए गए धर्म को कसौटी पर कस कर अर्थात् तर्क युक्त ज्ञान को ही महत्व दिया था। उन्होंने अवतारवाद को कभी नहीं माना था। महात्मा बुद्ध मानवता के शिखर पुरुष थे। उन्होंने जाति, धर्म, नर, नारी में फैली बुराइयों, भेदभाव को मिटाने एवं संपूर्ण मानव जाति के कल्याण हेतु जो ज्ञान रूपी गंगाबाई वह आज भी उतनी ही सार्थक है जितनी उनके समय में। गौतम बुद्ध का दर्शन सत्य, अहिंसा, करुणा ,मैत्री, जनकल्याणकारी, भाईचारा, मानवतावादी एवं बहुजन हिताय बहुजन सुखाय के सिद्धांत पर आधारित है जो एक स्वस्थ मजबूत तथा आदर्श मानव समाज के लिए अति आवश्यक है।

 

बौद्ध धर्म ईसा से 500 वर्ष पहले दुनिया में फैल चुका था। आज विश्व में बौद्ध धर्म दुनिया का दूसरा बड़ा धर्म है। जो भारत के अलावा चीन, नेपाल,जापान, भूटान, श्रीलंका, वियतनाम, थाईलैंड, कंबोडिया, मंगोलिया,म्यानमार, उत्तर कोरिया, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर,मलेशिया, ऑस्ट्रेलिया,अमेरिका, इंडोनेशिया,रूस आदि देशों में बौद्ध धर्म के करोड़ों अनुयाई है जो भारत से भी ज्यादा मात्रा में विदेशों में है। भारत से प्रारंभ होने वाला धर्म विदेशों में फैला किंतु हमारे देश मैं इतना नहीं फैला इसका दुर्भाग्यपूर्ण कारण यह है कि छठी-सातवीं सदी में पुष्यमित्र शुंग ने बौद्धों को दंडित किया तो शैव संप्रदाय के हूण राजा मिहिरकुल ने सैकड़ों बौद्धों को मौत के घाट उतार दिया। ह्वेनसांग के अनुसार शशांक ने 1600 स्तूप और विहार तोड़ डाले और भिक्षुओं व उपासकों को मार डाला गया। गौतम बुद्ध के प्रमुख शिष्य आनंद, महा कश्यप,महा प्रजापति, देवदत्त, अंगुलिमाल आदि थे‌। बुद्ध की शिक्षाएं आज भी मानव जाति के लिए अति प्रासंगिक है। उनके प्रथम उपदेश को चार आर्य सत्य के नाम से जाना जाता है-1दु:ख,2 दु:ख का कारण 3 दु:ख निरोध,4 दु:ख निरोधक का मार्ग।

 

उन्होंने दुखों के निवारण हेतु अष्टांगिक मार्ग बताएं। उन्होंने अपने अनुयायियों को निर्वाण प्राप्ति हेतु दस शील बताए थे। उन्होंने मानवता के मानक सूत्रगढ़ कर मनुष्य समाज को नया रास्ता दिखाया। समतामूलक समाज की स्थापना की। उनके उपदेश त्रिपिटक में संग्रहित है। त्रि+ पिटक अर्थात् तीन टोकरियों में ज्ञान को एकीकृत किया गया। ये विनय पिटक, सुत्त पिटक और अभिधम्म पिटक हैं। बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद वैशाली में हुई द्वितीय बौद्ध संगीति के दौरान बौद्ध धर्म के दो हिस्से हो गए हीनयान और महायान। हीनयान संप्रदाय में व्यक्ति विशेष के कल्याण पर बल दिया गया तो महायान संप्रदाय में समष्टी (समाज) के कल्याण पर विशेष बल दिया गया। बुद्ध ने महिलाओं को धर्म में स्वतंत्रता दी और अपनी विमाता गोतमी को सर्वप्रथम बौद्ध धर्म बौद्ध संघ में प्रवेश दिया गया गौतम बुद्ध ने उस समय आम लोगों की भाषा पाली में अपने धर्म उपदेश, प्रवचन दिए।

 

बुद्ध ने मध्यम मार्ग को अपनाया था। उन्होंने पशु बलि की निंदा की और विरोध किया उन्होंने अहिंसा पर बल दिया। दुखों के कारण और निवारण हेतु अष्टांगिक मार्ग को अपनाने के लिए उपदेश दिए उनका ज्ञान बहुजन हिताय बहुजन सुखाय पर आधारित था। अपने बौद्ध संघ में स्त्रियों को भी स्थान दिया। उन्होंने नगरवधू के नाम से जानी जाने वाली आम्रपाली नामक गणिका को भी अपनी शीष्या बनाकर ज्ञान एवं सम्मान दिया। उन्होंने महिलाओं दलितों, पिछड़ों, वंचितों को समानता का दर्जा देकर जनकल्याण का अद्भुत कार्य किया। बौद्ध धर्म एक ज्ञान- विज्ञान की विचारधारा है। बुद्ध ने समतावादी एवं मानवतावादी ज्ञान से विश्व को जीत लिया उन्होंने आम जन को जोड़कर उनके मन एवं दिल में ज्ञान कि जगह बनाई। उनकी विचार क्रांति ने धर्म क्रांति की सरिता बहाई। बुद्ध ने संसार को दु:ख एवं कष्ट से भरा हुआ माना था। इन दुखों का अंत भी संभव बताया जिसको उन्होंने निर्वाण बताया।

 

आज मानव ने अपनी नैसर्गिक जीवन शैली को बदल दीया है। मनुष्य आज स्वार्थी बन चुका है। उसने प्रकृति का खूब शोषण किया है। अनुशासनहीनता चरमोत्कर्ष पर है। वह भौतिकवादी जीवन शैली में अटूट विश्वास से जुड़ा हुआ हैं। विकृत खानपान, अमर्यादित रहन-सहन से आज कोरोना जैसी भयंकर विभीषिका ने संपूर्ण मानव समाज को चिंतित कर दिया है। जो दु:खों का कारण बना हुआ है। बुद्ध के ज्ञान से ही आज वर्तमान में मानव में फैली दहशत, अशांति, पीड़ा, दु:ख को खत्म किया जा सकता है। तृष्णा पर विजय पाने पर ही निर्वाण संभव है। बुद्ध ने दुनिया को जीता है पर आज दुनिया बुद्ध को नहीं जीत पाई है। बुद्ध पहले साम्यवादी थे जिन्होंने मनुष्य पशु-पक्षी प्रकृति की रक्षा की बात कही थी। बौद्ध धर्म ना जातिवाद को स्थान देता है और नहीं आदमी औरत में फर्क करता है। उनकी शिक्षाएं, सहज, सरल एवं तार्किक तथा वैज्ञानिक है।

 

बुद्ध कहते थे अज्ञान ही मनुष्य के दु:ख का कारण है। पाप और पुण्य मनुष्य के कर्मों का फल है। सर्वप्रथम गौतम बुद्ध ने बुरा ना देखो बुरा न सुनो और बुरा न कहो की बात कही थी। गौतम बुद्ध ने पहले मानव को सही अर्थों में मनुष्य बनाने की शिक्षा दी। गौतम बुद्ध की शिक्षाओं को आज भी मनुष्य समाज आत्मसात करें तो दुनिया की अनेक परेशानियां स्वत समाप्त हो जाएगी। उन्होंने सर्वप्रथम गाय की रक्षा करने की बात कही थी। बुधु की अंतिम वाणी” अप्प दीपो भव” अर्थात् अपने दीए खुद बनो। उनका ज्ञान आज भी प्रासंगिक है जो करोड़ों- करोड़ों लोगों को आज भी जीवन जीने का मार्ग सिखलाता है। डॉ. बी. आर. अंबेडकर ने कहा था-” यदि भविष्य में दुनिया को धर्म की जरूरत होगी तो मात्र बौद्ध धर्म ही पूरा कर सकता है। ” गौतम बुद्ध का प्रसिद्ध कथन आज के युवाओं को आज भी राह दिखा रहा है- “हे मानव!तुम शेर के सामने जाने से मत डरना, यह बहादुरी की परीक्षा है। तुम तलवार का सामना करने से भी भयभीत मत होना ,यह त्याग की कसौटी है। तुम पर्वत शिखर से पाताल में कूदते हुए भी मत डरना, यह तप परीक्षा है। तुम धधकती ज्वाला से भी मत डरना, यह स्वर्ण परीक्षा है ,लेकिन शराब से हमेशा भयभीत रहना क्योंकि यह बुराई, गरीबी व दुराचार की जननी है। “


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