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भगवान का दर्द | ऑनलाइन बुलेटिन

©कुमार अविनाश केसर

परिचय– मुजफ्फरपुर, बिहार


 

 

राम!

तुम एक चरित्र हो,

ग्रंथों से जटिल लेकिन

उससे भी पवित्र हो।

जैसा नाम, वैसा काम!

लेकिन कोई न दे सका वैसा दाम।

तुम्हारी मर्यादा ने तुम्हें ही छल लिया

तुम्हें भगवान बना दिया।

 

जब भी जाओगे, जंगल…

लोग, तुम्हें भगवान बना देंगे।

जब भी छलेगा हिरण…

लोग, तुम्हें भगवान बना देंगे!

जब भी हरी जाएगी सीता…

लोग, तुम्हें भगवान बना देंगे!

जब भी मरेगा रावण…

लोग, तुम्हें भगवान बना देंगे!

पर,

कोई (?)

नहीं समझेगा दर्द

वन गमन का!

मृग छलन का!

सीता हरण का!

रावण मरण का!

क्योंकि,

यह सब तुम्हारी लीला थी….

तुम, भगवान जो ठहरे!!

 

 


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