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असहाय | ऑनलाइन बुलेटिन

©अस्मिता झा

परिचय– मुजफ्फरपुर, बिहार.


 

इतने वर्षों से देख रही हूं,

सब कहते हैं,

भरा पूरा परिवार तो है,

लेकिन लाख मुश्किलों

में, तकलीफों में भी

पापा की तरह कोई

नहीं कहता,

“मैं हूं ना”।

 

दिन भर चक्करघिन्नी

की तरह पिसते रहने

पर भी मां की तरह

कोई नहीं कहता,

“पहले कुछ खा ले”

सब ठीक होगा।

 

लाख मुश्किलों में भी भाई की तरह

साथ नहीं खड़ा होता कोई,

बहन की तरह मेरी तरफ से

नहीं लड़ता है कोई।

 

बस और बस जिम्मेदारी

गिना दिए जाते हैं,

तानों और उलाहनों

से भर दिए जाते हैं मन,

कर्तव्य बता दिए जाते हैं,

प्यार नहीं देते कोई जो

फर्ज का एहसास करा जाते हैं,

वो चाहते हैं केवल प्रेम।

 

कोई तो उन्हें बताओ

जो खुद ही असहाय हो

वो कैसे देगा किसी को कुछ भी।।


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