छुपी हुई भावना; आवेश | ऑनलाइन बुलेटिन
©नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़
परिचय– मुंबई, आईटी सॉफ्टवेयर इंजीनियर.
भावना उनकी भी है, जो बेज़बान हैं,
भावना उनकी भी है, जो बेआवाज़ हैं।
दफ़न हो जाती है, हर रोज़ कहीं सिसकियाँ,
भावना उनकी भी है, जो नज़र अंदाज़ हैं।
टूटे काँच के टुकड़े का दर्द, कौन जानता है,
पिता के पाँव के छालों को, कौन मानता है,
चाहत सभी की है, रुबरु रहें हम हमेशा हक़ से,
सच दिख जाए जो आईने में, कौन पहचानता है।
दिल के अंगारे, आँखों से उबल कर आते हैं,
समन्दर के पानी यूँही नहीं खारे कहलाते हैं,
खुलेआम नीलाम कर देती है जिस्म को अपने,
नग्न आत्मा लिए, शरीफ़ खाने नज़र आते हैं।
कभी मुस्कान बेच दिया, कभी दर्द बेच दिया,
खिलौने के नाम पे, बच्चों ने बचपन बेच दिया,
क़ीमत लगा दी सभी ने, कुछ काग़ज़ के नोटों की,
टुकड़े में लिपटा, खुशियों का क़फ़न बेच दिया।
पीकर विष का प्याला, क़दम निकल पड़ते हैं,
तपन अग्नि बन दहकती ज़मीन पे चल पड़ते हैं,
आवेश के जज़्बात, सत्यता पे प्रकाश डालता है,
कभी आँसू तो कभी लहू छलक पड़ते हैं।
मन के गहन चित्रों को, काग़ज़ पे उतार लिया,
काँटे चुभते रहे मन में, फूलों को सबपे वार दिया,
ईर्ष्या, द्वेष, असत्य, अहंकार, सब करके त्याग,
जितना कर पाऊँ उतना ही उपकार किया।