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होली आई | ऑनलाइन बुलेटिन

©रामकेश एम यादव

परिचय– मुंबई, महाराष्ट्र.


 

 

गली-कूचे में उठे शोर समझो होली आई,

जब पवन करे अठखेली समझो होली आई।

शबनमी रात में चाँद भटकने लगे रास्ता,

चाँदनी की बढ़े तलब समझो होली आई।

 

कलियों के नशेमन पे गिरे विरह की बिजली,

जब टपकने लगे रंग, समझो होली आई।

मन के दरीचे को जब खोल दें कँवारियाँ,

होश उड़े जब लड़कों का समझो होली आई।

 

जब छूने से चढ़ने लगे बसंती हवाओं का नशा,

और उठने लगे जवानी समझो होली आई।

बे – आग जब जलने लगें दीपक से पतंगे,

जल-जल के वो मुस्कुराएँ समझो होली आई।

 

उठे थाप जब ढोलक पर और बजने लगे मृदंग,

अंग-अंग में गुदगुदी छाए समझो होली आई।

मंद -मंद मुस्कान जब उठे गोरी के होंठों पे,

और नींद सताए पूरी रात समझो होली आई।

 

अश्कों को जो पी रहे थे होंठों को सिलकर,

जब सपने लगें संवरने समझो होली आई।

मयकदे पर झूलने लगे जब हर जगह ताला,

पिलाए आँखों से जाम समझो होली आई।


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