चींख | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©बिजल जगड
ढूँढती है आँख सत्ह-ए-आब पर चेहरा ,
उदासी, खामोशी से पास आ कर बैठती,
हर इक मौज का दर्द आश्रा रहा है मातमी।
तूफानों की यलगार चट्टानों पे रात भर,
समुंदर में डूबे पीली रोशनी के फूल,
दिल में सजा रखें है ज़ख्मों के शूल।
किसके के पांव के आहट का इंतजार,
मेरी सांसों में जान ओ जिगर की तन्हाई,
ज़ेहन में बसी है खुश्क यादों की ज़ेबाई।
शबनम के हार बिखरें पड़े है फजा में,
के कोई गुजरे ज़माने तलाश कर रहा,
शब ओ रोज़ दर्द तन्हाई से टकरा रहा।
कभी यक-ब-यक गमो से फुर्सत मिले,
यहाँ तो अश्क फ़शाँ खामोश ही है रहे,
चीखें हंस हंस कर सरगम लिखते रहें।