मुहब्बत से गले लगाने … l Online Bulletin
©नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़, मुंबई
मुहब्बत से गले लगाने …
मोहब्बत से गले लगाने, एक बार चले आओ।
लबों को लब से मिलाने, एक बार चले आओ।
एक रात की मुलाक़ात का कभी वादा तो करो,
वादे को उम्र भर निभाने, एक बार चले आओ।
हमारी मोहब्बत पे तंज़ करती है दुनिया,
ज़माने को इश्क़ जताने, एक बार चले आओ।
उम्मीद का दामन, छूटने लगा है दिलबर,
बुझते दीये को जलाने, एक बार चले आओ।
थकने लगा है चाँद, तारीकी के साये में,
तारों से महफ़िल सजाने, एक बार चले आओ।
बिस्तर की सिलवटों ने भी रुख़ मोड़ लिया,
एहसास-ए-मोहब्बत जगाने, एक बार चले आओ।
सुकून रूह को भी हो जाएगी मेरे हमदम,
रूह से रूह को मिलाने, एक बार चले आओ।
रूह से रूह को मिलाने, एक बार चले आओ।