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मानव धर्म जिंदा है | Newsforum

©डॉ. कान्ति लाल यादव, सहायक आचार्य, उदयपुर, राजस्थान


 

लघु कहानी

 

राजेश और उसकी पत्नी जयमाला, सदा दूसरों की भलाई के लिए तत्पर रहने वाले दंपति के रूप में जाने जाते थे। सहपरिवार राजेश अपनी पत्नी जयमाला और अपनी दोनों बेटियों समेत तीर्थ के लिए निकले हुए थे। रास्ते में भयंकर कार एक्सीडेंट हुआ, जिसमें राजेश और अपनी दोनों बेटियों सहित सड़क हादसे में मौत हो गई। घर में अकेली जयमाला बच गई। इस हादसे से 5 वर्ष बाद जयमाला ने सोचा मैं अकेली रह गई हूं। इस जीवन में मेरा जो बचा हुआ समय है वह जनहित में काम आना चाहिए।

 

इसी सोच के साथ जयमाला समाज सेवा, जनहित के कार्यों में दिन-रात लगी रहती थी। जिससे उसके परिवार के उस हृदय विदारक घटना से तड़पती आत्मा को इस समाज सेवा के कार्यों से तृप्ति मिलती थी। कोरोना जैसी वैश्विक महामारी में जयमाला स्वयं मास्क बनाकर गरीब जनता को बांटने के लिए घर-घर निकली, जिसमें वह स्वयं कोरोना से ग्रसित हो गई। उसे कोरोना के लक्षण से आभास होने लगा। तभी उसने अपना इलाज करवाया जिससे पता चला कि कोरोना पॉजिटिव है।

 

डॉक्टर ने अस्पताल में भर्ती कर ईलाज शुरु कर दिया। वह मन ही मन में भगवान से प्रार्थना कर रही थी कि मैं यदि स्वस्थ हो जाऊं तो पुनः अपने जीवन को जनहित में लगा दूंगी। भगवान ने इसकी सुनी और उसके स्वास्थ्य में सुधार होने लगा और कोरोना पॉजिटिव से नेगेटिव हो गई। तभी वार्ड में एक युवती की जान कोरोना के कारण खतरे में है। उसे प्लाजमा थेरेपी दी जानी हे। जो मरीज कोरोना से नेगेटिव हुए वह यदि इसमें सहायता करते हैं तो उस युवती की जान बच सकती है। तभी बहुत सारे मरीज जो ठीक हो करके भी उस युवती की सहायता करने में मुंह छुपा रहे थे।

 

ऐसे में जयमाला ने अपना ब्लड देने के लिए और प्लाज्मा थेरेपी देने के लिए खुशी-खुशी तैयार हो गई। जिसकी वजह से है उस युवती की जान बच गई। उस युवती ने जयमाला को धन्यवाद देते हुए कहा आपकी वजह से मेरी जान बची है। मैं भी इसी अस्पताल की डॉक्टर हूं। मरीजों का इलाज करते हुए मैं भी पॉजिटिव हो गई थी। आज आपने मानव धर्म निभाया। मानव धर्म निभाने के साथ-साथ खून का रिश्ता हो गया। आप मुझे पुनर्जीवन देने वाली माता के समान हो। यह सुनते ही जयमाला की आंखों से और डॉक्टर लेडी के आंखों से खुशी के आंसू निकल पड़े। डॉक्टर की टीम कहने लगी- “ऐसे समाज सेवा से ही मानव धर्म जिंदा है।”


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