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मैं औरत हूँ | ऑनलाइन बुलेटिन

©रामकेश एम यादव

परिचय– मुंबई, महाराष्ट्र.


 

 

 

मैं एक औरत हूँ,

मैं करती हूँ अपने घर का काम,

तैयार करती हूँ सुबह-सुबह चाय,नाश्ता,

औ बनाती हूँ सबके लिए खाना,

अपने घर की दरो -दीवार हूँ,

मैं एक औरत हूँ।

 

करती हूँ बच्चों को तैयार स्कूल के लिए,

रिश्तों को मैं बोझ नहीं समझती,

मैं कल्पनाओं में नहीं,

हकीकत की दुनिया में जीती हूँ।

व्यथित, कुंठित नहीं, नरम दिल सही,

हौसला बुलंद रखती हूँ,

अपने परिवार को सहेज कर रखती हूँ,

मैं एक औरत हूँ।

 

मैं एक जिस्म का टुकड़ा नहीं,

मैं धरती का आधार हूँ।

मेरा बच्चा जब मुझे माँ कहता है,

मैं जैसे सारा संसार पा जाती हूँ।

दुःख के पठार से बहुत दूर,

फटकार की खाइयों से बहुर दूर ।

मैं मर्दों की हवस नहीं,

मैं एक ज्वाला हूँ।

मैं एक औरत हूँ।

 

मैं बिखरना नहीं जानती,

परिवार की हंसी-ठिठोली के बीच,

मधुमक्खियों सरीखी छत्ता बुनती हूँ,

मोम की तरह पिघलना नहीं जानती।

मैं इक्कीसवी सदी की औरत हूँ,

मैं एक औरत हूँ।

 

मैं मर्दों के हर जुल्म को कुचलना जानती हूँ। ऐय्याशों के दरबारों में मैं नहीं नाचती,

शरीफों के दरबारों में नहीं बिकती।

मुझे अपने देश के संस्कार को बचाना है,

अपने मन की कोपलों पर

नई इबारत लिखना है।

मैं अंदर से सशक्त हूँ,

मुझे कोई कमजोर न समझे,

मैं एक औरत हूँ।

 


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