.

बस मुझे मेरी मां की याद आती है | Newsforum

©प्रियंका महंत, रायगढ़, छत्तीसगढ़

परिचय: किरोड़ीमल कला एवं विज्ञान महाविद्यालय से एमए संस्कृत की छात्रा, लेखन के क्षेत्र में रुचि.


 

 

जब भी लगती भूख मुझे, रोटी गोल खिलाती है।

जब अंधेरी रात में, बिजली जोर कड़कती है।

वो समेट के गोदी में, मेरा डर भगाती है।

बस मुझे मेरी, मां की याद आती है।

 

हो तकरार कभी सुह्रद से मेरे, आकर मां समझाती है।

सत्यराह पर पर चलना लाला, प्रेम की भाषा सिखाती है।

साथ खेलते साथ है पढ़ते मित्रता का, मतलब बताती है।

बस मुझे मेरी मां की याद आती है।

 

आते भोर कभी हो जाती, मां कैसे घबराती है।

मुन्ना राजा कहां है मेरा, उसकी आंखें भर आती है।

करूं मैं मां से आंख मिचौली, बिन मेरे ना एक पल रह पाती है।

बस मुझे मेरी मां की याद आती है।

 

अगर रात को नींद ना आती, लोरी गाकर मां सुलाती है।

खेल-खेलते लगी चोट तो, झटपट दौड़ लगाती है।

हूं उदास जो मैं कभी तो, वो मुझे हंसाती है।

बस मुझे मेरी मां की याद आती है।

 

जिद्दी हूं मैं रूठ जो जाता, मां ही गुड्डा मुझे दिलाती है।

मां से बढ़कर कोई ना जग में, मां सबकुछ कर जाती है।

मां वो शीतल आवरण है, जो दुःख तकलीफ की तपिस को ढक जाती है।

बस मुझे मेरी मां की याद आती है।

 

ममता की मूरत मां ही है, जो सद्भाव सिखाती है।

मां का होना हमें जीवन की, हर लड़ाई लड़ने की शक्ति दिलाती है।

हर शब्द से परे, मां शब्द के अर्थ को भला कौन समझाती है।

बस मुझे मेरी, मां की याद आती है।

 

मां वो अनंत शक्तियों की धारिणी है, जो ईश्वरीय शक्ति प्रतिरूप ईश के सदृश्य होती है।

मां की सेवाकर शुभवचनों, शुभाशीष से आन प्राप्त होती है।

है मेरा ये सौभाग्य, क्योंकि मां अवर्णनीय होती है।

बस मुझे मेरी, मां की याद आती है।

 

मां शब्द के अर्थ को, भला उपमाओं में दी जा सकती है?

मां शब्द की विशालता ना कभी चंद शब्दों में की जा सकती है।

जीवन में ना कोई भी, इस मातृ ऋण से मुक्त हो पाती है।

बस मुझे मेरी, मां की याद आती है।

 


Back to top button