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भटकता मैं दर-बदर | ऑनलाइन बुलेटिन

©देवप्रसाद पात्रे

परिचय– मुंगेली, छत्तीसगढ़


 

 

 

भटकता मैं दर-बदर,

कहाँ हूँ मैं होश न खबर।।…

कभी इस राह में, कभी उस राह में।।

खा ली क्या मैंने है किसका असर।।

कहाँ हूँ मैं होश न खबर।।…

 

वो किस घड़ी कब राह में निकल पड़ा।

अंजान सी डगर जिसमें चल पड़ा।।

थे अजनबी कब से इंतज़ार में,

हां लूट गया गैरों के बाजार में।।

बच जाता मैं होश में होता अगर

कहाँ हूँ मैं होश न खबर।।…

 

किसने क्या खिला दी कब की बात है??

लगा जैसे जीवन की सौगात है।।

अपना कौन पराया समझ आया नहीं

मुश्किलों से लड़ना कभी आया नहीं।

खुद से रहा मैं अंजान बेखबर…

कहाँ हूँ मैं होश न खबर।।…

 


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