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दाई के चरण म | Newsforum

©प्रीतामप्यारे मार्शल, बिलासपुर, छत्तीसगढ़


 

 

जनम दिये बर दाई भवसागर के पीरा ल सहिथे।

पूछइया ल जी हॅस-हॅस के बने-बने हव कहिथे।

 

लईका के चोट म जी पहली तो महतारी ह रोथे।

लईका ल सुताय  के बाद ही  महतारी ह सोथे।।

 

लईका के खाय बिना महतारी के पेट भरय नहीं।

अपन लईका ल एक नजर देखे बिना रहय नहीं।।

 

लईका के खुशी म जी अपन दुःख ल भूला जाथे।

लईका के जी पालन पोसन म खुद ल भूला जाथे।।

 

दीया ले भी बढ़ के होथे जी हर महतारी के दिल।

हर मुसीबत झेलथे लईका ल बनाये बर काबिल।।

 

नईचये कहिके लईका ल चुप चाप पईसा धराथे।

लईका खातीर जी महतारी ह यमराज ल हराथे।।

 

झनभूल जी स्वर्ग के अहसास हे दाई के चरण म।

जग के सुख पाथे जे ह रथे जी दाई के शरण म।।

 


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