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इश्क | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©भरत मल्होत्रा

परिचय- मुंबई, महाराष्ट्र


 

इश्क में तेरे कुछ ऐसे मर मिटा हूँ मैं

तू ही तू है मुझमें अब कहाँ बचा हूँ मैं

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उगेगा पानियों के दरख्तों का दश्त कल

तेरी गली में अश्क थोड़े बो चला हूँ मैं

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तमन्ना तुझसे मिलने की दिल में लिए हुए

आग में तन्हाई की बरसों जला हूँ मैं

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दीवाने तेरे और भी तो होंगे बहुत से

पर आज़मा के देख ले सबसे जुदा हूँ मैं

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होगी कभी तो नज़र-ए-करम तेरी इधर भी

इस आस में मर-मर के रोज़ जी रहा हूँ मैं

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