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कुंडलिया, पार लगाना | ऑनलाइन बुलेटिन

©सरस्वती राजेश साहू, बिलासपुर, छत्तीसगढ़

 


 

 

पार लगाना हे प्रभो, अटकी जीवन धार।

ज्ञान बुद्धि बल दे हमें, हे जग के करतार।

हे जग के करतार, हमें भी शरण बुलालो।

हुए दीन दुखियार, जरा तुम गले लगालो ।

रूठे क्यूँ भगवान, द्वार पर तेरा आना।

हुआ भाग बलवान, जगत से पार लगाना।

 

पार लगाना जीव को, आया है संसार।

कर्म जीव करता गया, खेला अपरम्पार।

खेला अपरम्पार, खेलाता है जग माली।

आया खाली हाथ, सभी को जाना खाली।

रहे प्रेम गठजोर, विनय का भरे खजाना।

शुभ कर्मों के साथ, हमें भी पार लगाना।

पार लगाना प्रेम से, गूँजे मन संगीत।

खिले पुष्प बन जिंदगी, फिर पाऊँ मनमीत।

फिर पाऊँ मन मीत, प्रार्थना हर पल मेरी।

नित गाऊँ यश गान, प्रणय भर प्रियतम तेरी।

गिरती अँसुवन धार, समय को शीघ्र चलाना।

दया करो करतार, जन्म अब पार लगाना।


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