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जी भर देखूं, आज प्रिये को, कल शायद ना देख सकूँ | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©हिमांशु पाठक, पहाड़

परिचय- नैनीताल, उत्तराखंड.


 

जी करता है, जी-भर तुमसे,

प्रिये! आज, मैं बात करूँ।।

उर में, जो उदगार छिपें हैं,

उनको तुमसे व्यक्त करूँ।।

सज़ल नयन है, व्याकुल मन है,

और अधर हैं; मौन प्रिये।।

शब्द नहीं है, आज कोष में,

जिनसे भावों को व्यक्त करूँ,

सोच रहा हूँ, स्याही बनाऊं,

आँसु का सदुपयोग करूँ ।।

उर के उदगारों को प्रियवर,

अधरों से में व्यक्त करूँ ।

जी करता है, जी-भर तुमसे,

आज प्रिये! मैं बात करूँ ।।

करूँ ! गुजारिश, आज समय से,

कि वह कुछ पल थम जाए,

ढलते सूरज के, रथ का पहिया ,

कुछ पल को ठहर जाए।।

जी भर देखूं, आज प्रिये को,

कल शायद ना देख सकूँ।।

आज जो ना कर पाया व्यक्त तो,

कल शायद ना कर पाऊँ।।

मन में एक अफसोस लिए,

जब, जीवन छोड़ चला जाऊँ।

पीर, विरह की, मेरे अंतर में ,

फिर अपूर्ण ना रहन जाए।।

यही सोचकर आज प्रिये से,

जीभर कर मैं बात करूँ ।।

जी करता है, आज प्रिये, मैं,

जीभर तुमसे बात करूँ।।

एक सदी के बाद, समय के,

मिले हैं हम-तुम, आज प्रिये!

एक संकोच है; आज हृदय में,

नहीं सहज है; आज प्रिये।।

एक -दूसरे से भाव छिपाते,

एक -दूसरे की चाह प्रिये!

नयन, नयन से बातें करतीं,

स्पंदन, बनकर के सरगम,

मस्त-मगन हो नृत्य करें।

क्यों अपने, मैं भाव छिपाऊँ,

कहूँ आज, मैं प्रेम करूँ।।

तुमसे, प्रिये मैं प्रेम करूँ ।।

तुमसे प्रिये मैं प्रेम करूँ ।।

 

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