ज़िंदगी हर घड़ी | ऑनलाइन बुलेटिन
©हिमांशु पाठक, पहाड़
परिचय– नैनीताल, उत्तराखंड.
गजल
ज़िंदगी हर घड़ी, बस रूलाने लगी।
आहिस्ता-आहिस्ता ये रूलाने लगी।
ज़िंदगी हर घड़ी ……
जाके किससे बयां, मैं करूँ हाल-ऐ-दिल।
हर नज़र मुझसे नजरें चुराने लगीं।
ज़िंदगी हर घड़ी …..
जब तलक आसमां को छूता था मैं।
वज़ूद से मेरे महफि़लें सजने लगीं।
ज़िंदगी हर ……
आज आकर गिरा हूँ, मैं जब फर्श पर,
मेरी साँसे क्यों, पीछा छुड़ाने लगी।
ज़िंदगी हर…..
लौट आया जो मैं, अपनी राहों पे अब
ज़िंदगी मुझको मुँह अब चिढ़ाने लगी।
ज़िंदगी हर…….
ज़िंदगी हर घड़ी बस रूलाने लगी।
आहिस्ता-आहिस्ता दूर जाने लगी।