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जिंदगी एक गेंद । Newsforum

©हरीश पांडल, बिलासपुर, छत्तीसगढ़


 

 

आम इंसान की जिंदगी

गेंद बन गई है

चारो तरफ मंहगाई जिसमें

पिस के रह गई है

आम इंसान

जिधर भी जाये

व्यापारी, कर्मचारी,

अधिकारी

सब उसे गेंद समझ

लात मारते हैं

और अपने पास आते ही

दुसरे की तरफ,

उछाल देते हैं ?

आम इंसान की जिंदगी

गेंद सी बन गई है

जब वह नेताओं

के पास जाते हैं

तो वंहा भी टकराव है

नेता पहले देखता है कि

इसने वोट किसे दिया है

और विपक्षी समझ

वंह भी टरका देते हैं

वो भी उस गेंद को

पांच साल के लिए

लात मार दुर उछाल देते हैं

आम इंसान की जिंदगी

गेंद बन गई है

सक्षम रिश्तेदारों के पास

कुछ उम्मीद लेकर जब जाते

तो उनकी जिंदगी सेट है

भोजन एक दिन कराते हैं

और कहते हैं कि

वह भी बहुत अपसेट है

गाड़ी बंगला,का लोन

सर पर कर्ज का बोझ है

कहते हैं कि आपकों

क्या समझाऊं

आपको बोध है

ऐसा सुझाव वह देते हैं

और अपना पल्ला झाड़ लेते हैं

आम इंसान की जिंदगी

गेंद सी बन गई है

क्योंकि सबको पता है कि

गेंद को लात मारने से

दर्द नहीं होता

इसलिए

अपने पास आते ही

लोग लात मारकर

दुर उछाल देते हैं

किसी पर उम्मीद करना

छोड़ दे हरीश

अपनी जिंदगी का

रुख मोड़

जिंदगी में मेहनत पर

विश्वास रख और

अपने आपको गेंद?

मत बना

इरादो से,मेहनत के बल पर

वजनदार और मजबूत बन

इरादो और मंसुबो को

इकठ्ठा कर

नेकराह पर चल और

दिखा दे मजदूरों की

भुजाओं की फौलाद

दुनिया कह सकें यह है

मेहनती पिता की औलाद …


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