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महतारी | Newsforum

©महेतरू मधुकर (शिक्षक), पचेपेड़ी, बिलासपुर, छत्तीसगढ़


 

दु:ख पीरा ल सब अपन ह सहिथे,

लईका बर खुशी लुटाथे महतारी।

रखथे खियाल सबले निकता,

हर सपना ल सजाथे महतारी।

जम्मो तो इहाँ सजा देवईया ए,

गलती घलु ल लुकाथे महतारी।

संसो फिकर के अंधियारी घोपे म,

रिगबिग ले अंजोर बगराथे महतारी।

दुनिया ल तो बस मतलब के परे हे,

तन-मन के थकान मेटाथे महतारी।

जग म सबले बड़का पद हेवय संगी,

जिनगी ल खुशहाल बनाथे महतारी।

नईहे जग म कोनो पीरा के चिनहईया,

मनमाफिक आसीस बरसाथे महतारी।

कभू ए नई चाहय के घाटा होवय,

दुनिया के बुराई ले बचाथे महतारी।

भले ही रहि जाही लांघन अपन हर,

फेर लईका ल कंवरा खवाथे महतारी।

महतारी के कोरा हर सुख के खदान हे,

अचरा के शीतल छईंहा छाथे महतारी।

सेवा, सुख के ऊहू हे जी अधिकारी,

मया के महल ल सजाथे महतारी।।

 


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