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मामा का घर | Newsforum

©हरीश पांडल, बिलासपुर, छत्तीसगढ़


 

ना कोई भय

ना कोई डर

बचपन की यादें

मामा का घर

स्वछंद होकर

इतराते

हंसते गाते और

इठलाते

डांट वहां ना

पड़ती हमको

नाना- नानी के

मिलते प्यार

बचपन की यादें

मामा का घर

भाई- बहन जब

थोड़ा लड़ते

होकर गुस्सा कुछ

नखरे दिखाते

खाना खाने से हम

मना करते

मामा- मामी

नाना- नानी

सब हमें मनाते

कैसे भी करके

खाना खिलाते

सांझ होते ही

नानी के किस्से

रोज हमारे

आते हिस्से

सबके मिलते

ढेरों दुलार

बचपन की यादें

मामा का घर

मेले की भीड़

जाने की जिद

छोटी का हाथ

नानी पकड़ती

नाना के कांधे

पर मैं था बैठा

जैसे कोई राजा

शान से ऐंठा

मामा दौड़कर

जलेबियां लाता

बड़े प्यार से

हमें खिलाता

मामी आंचल से

पैसे निकालती

हमें मनपसंद

खिलौने दिलाती

मस्ती करते

मौज मनाते

मेले में हम

झूले झूलते

मारे खुशी के

हम हैं फुलते

बचपन का था

वही आधार

ना कोई भय

ना कोई डर

बचपन की यादें

मामा का घर

जहां मिलते बस

लाड़- दुलार

आंगन में झूले

बंधवाते

नाना से धक्के

लगवाते

मामा से है पतंगें

मंगवाते

मामी से मांझा

बंधवाते

पतंगें तों हम

खूब उड़ाते

कटने पर कितना

चिल्लाते

मामा से कितने

दौड़ लगवाते

मामा- मामा की

शोर मचाते

मामा के घर

मौज ही मौज

हम भाई- बहनों

की लगती फ़ौज

नाना- नानी का

प्यार निराला

मामा होते कितने

मतवाला

बचपन के वे हमारे

रखवाला

मामा हमारे है

हिम्मतवाला

करते हैं हम

उनसे प्यार

बचपन की यादें

मामा का घर

ना कोई भय

ना कोई डर,,,,,

 

 


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