मनीषा शहीद दिवस | newsforum
©डॉ. संतराम आर्य
वरिष्ठ साहित्यकार, नई दिल्ली
परिचय : जन्म 14 फरवरी, 1938, रोहतक।
सपने में कल आई मनीषा
टपक रहे थे आंसू
बोली क्या तुम नहीं जानते बाबा
मैं रोती हूं क्यों
मैंने कहा- मैं नहीं जानता
इन अश्कों की भाषा
मुझसे किसी बेटी की आंखों में
कोई आंसू देखा नहीं जाता
14/9 को 4 गुंडों ने खेला हैवानियत का खेल मेंरे साथ
मैं तो चारा लेने गई थी खेत में
एक सामंती गुंडे ने पकड़ा मेंरा हाथ
ऐसा देख मैं चिल्लाई जोर से
कोई नहीं था मेंरे साथ
इतने में आकर भड़वे 3
बाज़ की ज्यों चिपटे
चील कौव्वे से छाए मुझ पर
बिना किसी के डर खटके के
मैं समझी थी इनमें होगा कोई मेंरा मुकाबले में मैं रही अकेली
उन चारों ने मुझे घेरा
मैंने टक्कर दी थी बड़े जोर की
हत्यारा राम-राज का दीवाना
बहुत दूर थे मेंरे अपने
और हरदिल अजीज जमाना
रीड तोड़ दी, गर्दन ऐंठी, जुबाँ काट दी मेंरी… अस्मिता को छीन लिया
सम्मान समाज में रहा नहीं
मनोबल से भी हीन किया
मैं बेहोश हुई फिर कुछ ज्ञान नहीं, चार रहे थे या कुछ और
सत्ता ताल तलैया खेती पानी उनका
गाय भैंस भी उनके ही ढोर
कामकाज भी वही देते हैं सभी गांव में उनका जोर
एहसान तुम्हारा होगा बाबा
मेंरा संदेश देश तक पहुंचा देना
चाहे रहो नगर के किसी कोने में
पर किसी गांव में नहीं रहना
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
धर्म ज्ञान का हमको पाठ पढ़ाते हैं
मजलूमों के आशियाने में
निशदिन आग लगाते हैं
जो शादी करते करके छोड़ दें
वो बेटी पत्नी की इज्जत क्या जाने
हराम का खाना झूठ बोलना
वह सामाजिक रिश्ते क्या जाने
इसलिए मैं हार गई हूँ
इस राम-राज के हिंदू से
यह सिंधु से हिंदू नहीं बना है
मैं हारी हूँ काफिर इंदु से
दूरदृष्टि से संतराम की
सामंतो से कहती है
मेंरी बेटी मनीषा
मेंरी आंखों में बसी रहती है
बेटी का सपना एक दिन रंग दिखाएगा
इंसाफ के लिए शहीद हुई है
कभी ना खाली जाएगा
ऊपर को मुंह करके थूका है
तो सीधा मुंह पर आएगा
अंधभक्त सत्ताधारी पाखंडी
बनता है महाज्ञानी
पथरों में भगवान खोजता
बुद्धि से है अज्ञानी
15 दिन तक सफदरजंग में
मैंने नहीं आंख खोलकर देखी
पुलिस प्रशासन ने
अंधेरी रात में तेल डालकर
उसी खेत में 29/9 को
किसी लाश और की फूंकी
मेंरी लाश नहीं आई गांव में
यह चर्चा एकदम है झूठी
परिवार रहा दर्शन का प्यासा
मैं रह गई दर्शन की भूखी
यही बताने आई हूँ मैं
दलित वन की गाथा
एक दिन हर घर में ऐसा होगा
यदि अनुसूचित नहीं जाता
मैंने गहराई से समझ लिया है
जीवन का हर अंतिम पहलू
तुम सबको बतला देना बाबा
मैं रोती हूं क्यों
में कल मनीषा
टपक रहे थे आंसू
बोलो क्या तुम नहीं जानते बाबा
मैं रोती हूं क्यों ….
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