लेखनी मेरी अमर रहे | ऑनलाइन बुलेटिन
©डीआर महतो “मनु”
परिचय- रांची, झारखंड
वेद, पुराण, काव्य, ग्रंथों को बनाया,
लेखनी तेरे समर्पण को सदैव प्रणाम।
खुद मिट गए पर तेरे लेख अमर रहे।
लेखनी मेरी तु यूं ही गतिमान रहे…
ना पहचान की कभी पन्नों की और
ना बांटा कभी धर्म और भाषाओं को,
उपकारों के लिए सदैव निखरता रहे।
लेखनी मेरी तु यूं ही गतिमान रहे…
ना पहचान की कभी मूर्खों की और
ना परखा कभी ज्ञानी-पंडितों को,
मानवता के लिए सदैव चलता रहे।
लेखनी मेरी तु यूं ही गतिमान रहे…
तुमने कला एवं संस्कृति को सराहा,
असंख्य कोरे पन्नों को रंगीन बनाया,
क्या गरीब क्या अमीर सब पढ़ते रहे।
लेखनी मेरी तु यूं ही गतिमान रहे…
तेरे लेखों से अनेकों गुणी-विद्वान बने,
मुर्ख भी जीवन की राहों को पहचाने,
खुद सिमट गए लेकिन उन्हें जगाते रहे।
लेखनी मेरी तु यूं ही गतिमान रहे…
क से ज्ञ तक ए से जेड तक पढाया,
एक से असंख्य तक और शून्य से
दशमलव तक सबको सिखाते रहे।
लेखनी मेरी तु यूं ही गतिमान रहे…
विज्ञान, समाज और इतिहास जाना,
गुनेहगारों को उनकी सजा दिलाया,
कभी भावों में बिके तो कभी खुले रहे।
लेखनी मेरी तु यूं ही गतिमान रहे…