शायद कहीं से…

©गायकवाड विलास
बादल भी अश्क बहाते है मेरे लिए,
दर्द मेरे अब उन्हें भी देखें नहीं जाते है ।
चांद तारें भी खिले खिले है आसमां में,
देखो बहारें भी तेरे लिए कितनी सजी हुई है।
आज भी है मुझे सिर्फ तेरा ही इंतज़ार,
जैसे सदियों से है आसमां का धरती के लिए प्यार।
पल-पल घड़ियां बीत रही है तेरे ही यादों में,
शबनमी पलकें उठाकर,अब तो करो तुम प्रीत का इजहार।
आशाओं के दीप जलाकर निगाहें ढूंढ रही है तुम्हें,
और धुंधली हुई दिशाओं में हंस रही है देखो कैसे बेचैनियां।
टूटे अरमान लिए अब जिएं नहीं जाती ये जिंदगी,
कैसे रोक पाऊं अब ये बहती हुई अश्कों की नदियां।
भोर की बेला भी देखो लगती है कितनी उदासी भरी,
वो भी तुम्हारे इंतज़ार में विरान सी बनी हुई है ।
हदें इंतजार की भी हो गई,ऐसे कहां तुम रूठकर चली,
देखो अब हवाएं भी कैसी ठहरी ठहरी सी लग रही है ।
जब मुस्कुराती थी तुम, कलियां भी खिली खिली लगती थी,
अब वो कलियां भी मुरझा गई है तुम्हारे इंतज़ार में।
उजड़ गया मेरा चमन, छोड़ दिया तुने मेरा दामन,
फिर भी शायद कहीं से आओगी तुम,यही आरज़ू है इस निगाहों में – – –