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मोबइल अऊ आज के लइका | Onlinebulletin

©द्रौपदी साहू (शिक्षिका), कोरबा, छत्तीसगढ़


छत्तीसगढ़ी रचना

 

आज के जुग म मोबइल अऊ ओखर दुनिया भर के एप मन जम्मो झन ल मोह डारे हे। दिन – रात जेला देखबे तेला मोबइल म ही मगन रथे। कतका बेरा बिहिना होथे, अऊ कतका बेरा संझा हो जाथे, तउनो के गम नइ मिलय। लइका-सियान जम्मो झन मोबइल के दिवाना हो गे हें। आज के लइका मन ल देखबे त, दिन भर मोबइलेच म‌ गड़े रथें। दिन भर लूडो, पब्जी, बिडियो गेम खेलइ म माते रथें।

 

घर म कतको चिल्लावत र फेर एको घांव हुंत नी करें। दिन भर मोबइल ल धर के सुते-सुते अऊ बइठे-बइठे दिन ल पहा देथें। अब तो लइका मन के जम्मो खेल-खेलवारी मन घलो नंदा जात हें। आजकाल तो खेले के नाव म कोनो अपन घर ले बाहिर नी निकलंय। टीबी अऊ मोबइल इही दुनो म बइठे-सुते, खेल-खेल के बेरा ल पहा डारथें। तइहा के खेल-खेलवारी मन कतका सुघ्घर लागय।

 

कुछु खेलउना नइ रहय तभो खेले के नावा- नावा बिचार मन म आ जावय अऊ जम्मो हांसी-खुशी खेलंय। अटकन-बटकन, चाल-गोटी, पचीसा, बांटी, सत्तुल, गुल्ली डंडा, परी-पत्थर, आलू-चोर, रेस-टीप, चोर-पुलिस, चुड़ी लुकउल, बनिया धरउल, कित-कित, गोंदा-पचरंगा, घर-घुंदिया, रस्सी कूद, कोसम-पान, छू- छुअउल, घोड़ा है बादाम साय, फुगड़ी, खो-खो, रंगे-बिरंगे अऊ कतका कन खेल खेलन! कहुं करा कुधरा दीख जातिस त कुधरा म गुफा बनाय के खेल खेलन! आजकाल के लइकामन तो मोबइलेच म‌ बिधुन रथें।

 

न तो पहिली जइसे खेल खेलंय न तो कखरो गोठ-बात मानंय। पहिली के खेल मन लइका मन के बुद्धि अऊ शरीर दुनो ल फायदा पहुंचावय लेकिन आज के लइकामन ल देखबे त नानकन ले चश्मा लगे के नौबत आ जात हे। एखर परमुख कारन ए दिन भर टीबी अऊ मोबइल म गड़े रहना! दई-ददा मन घलो मना नइ करंय तेखर ले लइकामन अऊ मुंड़ म चघ जात हें, अऊ अपन संस्कार घलो ल भुलावत जात हें। मोबइल के उपयोग ओतके करव, जेतका ओखर जरूरत हे।

 

कोरोनावायरस के आय ले तो अऊ जादा मोबइल के राज होगे हे। पढ़ई-लिखई सबो काम मोबइलेच म होत हे। तब ले लइका मन अऊ जादा मोबइल ल चलाय लग गे हें। घर म अपन दई-ददा करा पढ़त हन कहिके बहाना घलो मार देथें। दई-ददा मन घलो खुश रथें मोर लइका हर बने पढ़त हे कके! लेकिन ओखर धियान तो खेले म रथे।

 

मोबइल म खेले बर मनाही तो नइ हे लेकिन ओहिच म गड़े रहे ले नुकसान हावे। तेखर ले मोबइल ल जरूरत के हिसाब से चलावव अऊ मोबइल म खेल खेले के बजाय प्राकृतिक रूप से खेल खेलव, जेखर ले शरीर हर तंदरुस्त बनही अऊ हमर खेल मन घलो नइ नंदाही।


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