मनोबल | ऑनलाइन बुलेटिन
©जलेश्वरी गेंदले, शिक्षिका.
परिचय– पथरिया, मुंगेली, छत्तीसगढ़
मन तो मेरा आसमान में उड़ने का है
सोच नहीं है मेरी अब, पीछे मुड़ने की
मन चाहा मुकाम पाने की है
साथ भी है अरमान भी है
यह तो स्वयं का मनोबल है।
पास आऊं वो सारी बात सुनाऊं
जिनसे मिली हैं खुशियां सारी
जहां हम सब हैं एक समान,
सम्मान स्वतंत्रता के अधिकारी
यह तो स्वयं का मनोबल है।
चली थी अकेली बड़े गर्व से
सोच रखी थी कि साथ आएंगे सभी
रुक गये कुछ लोग
मैं समय के साथ चलती रही
आखिर स्वयं का तो मनोबल है।
पक्का हो मन में मन की बात
रोक ले चाहे कोई मेरी राह
चल पड़ी हूं लेके कलम हाथ
लिखूंगी मैं बीता कल, आज और कल
सच में यह तो मेरा मनोबल है।
बिखरे हैं अब एक हो जाएं
अभिमान बिना जिस्म बेजान है
क्या मैं जिंदा हूं???
जाना मैंने कोई नहीं तो क्या हुआ
सकारात्मक विचार क्रांति है अब
बहुत-बहुत आभार आपका
जो मिला आपसे मुझे
मनोबल रूपी हथियार ही तो है।