ऐसी होती है माँ | Onlinebulletin.in
©रामकेश एम यादव, मुंबई
जैसे बहती अमृत की धारा,
वैसी होती है माँ।
जैसी कोई बासंती पवन,
वैसी होती है माँ।
घर का बोझ पहाड़ के जैसे,
सिर अपने है ढोती माँ।
मानों हो कोई परी की लोरी,
देखो वैसी होती माँ।
अपनी संतानों के सुख में,
बीज खुशी का है बोती।
हर संकट का ढाल हो कोई,
वैसी होती है माँ।
माँ की गोद के आगे देखो,
हर सिंहासन है छोटा।
मानों घर में ईश्वर आया,
वैसी होती है माँ।
दादी, काकी, मौसी, नानी,
सारे गुण उसमें होते।
महके जैसे धनिया की पत्ती,
वैसी होती है माँ।
जब घर से हम बाहर जाते
लाख दुवाएँ देती माँ।
कलरव करते डाल पे परिन्दे,
वैसी होती है माँ।
करती घर को देखो रोशन,
बुनकर अपने सपनों से।
एक था हामिद उसकी अमीना,
वैसी होती है माँ।
निर्मल, कोमल, अविरल, शीतल,
गंगा जैसी पावन माँ।
चंद्रशेखर आजाद बना दे,
वैसी होती है माँ।
आँखों में ममता का सागर,
जाड़े की वो मीठी धूप।
करती रिश्तों की तुरपाई,
वैसी होती है माँ।
पूर्ण नहीं है जग में कोई,
पूर्ण जहां में केवल माँ।
इंद्र धनुष के रंगों जैसी
वैसी होती है माँ।
माँ से बड़ा न कोई जग में,
हर माँ को मेरा वंदन।
मानों धरा की धुरी जैसी,
वैसी होती है माँ।