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मां की गोद | Newsforum

©अनिल बिड़लान, हरियाणा

परिचय : शिक्षक, काव्य संग्रह- कब तक मारे जाओगे और सुलगते शब्द, विभिन्न समाचार पत्रों व पत्र-पत्रिकाओं में भी रचनाएं प्रकाशित.


 

अब वक़्त नहीं मिलता

कि मैं लौट जाऊं

उन बेफिक्री के दिनों में

जब मैं सिर्फ खाता-पीता

और खेल कूद कर

थक हार कर

लिपट जाता था

मां के आंचल में

और रख देता था सिर

मां की गोद में

आते ही सिर पर

मां का हाथ

खो जाता था नींद में

चला जाता था दूर कहीं

सपनों के देश में

बस यही दिनचर्या थी

मेरी भी और शायद

आप सब की भी बचपन में

ना पैसे कमाने का झंझट

ना मान सम्मान का

लालच मन में

बस जहां तक जाती नजर

दौड़ती थी जिंदगी

बेधड़क होकर आनंद में

बिना किसी भी बंधन में …

 


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