मां की ममता | Newsforum
©जबरा राम कंडारा, वरिष्ठ अध्यापक, जालोर, राजस्थान.
परिचय- शिक्षा- एमए, बीएड, हिंदी व राजस्थानी भाषा में साहित्य, लेख व कविता का प्रकाशन.
मां से बड़ा न कोई जग में, मां ईश्वर का रूप है।
मां की तुलना नहीं किसी से, ऐसी मां अनूप है।।
सदा फिक्र बच्चों की करती, हर पल रखती ध्यान है।
खुश रहती खुश देख सभी को, मां कितनी महान है।।
किसने खाया किसको खाना, किसको कहां जाना है।
सारा ध्यान सभी का रहता, क्या-क्या घर में लाना है।।
कभी डांटती फिर मुस्काती, मां भोली-भाली सरल है।
बच्चों बिन बिल्कुल नहीं रहती, मुश्किल होता पल है।।
गुस्सा क्या होता ना देखा, हर पल प्यार झलकता है।
बच्चों के लिये कोई खुशी हो, उसका दिल पुलकता है।।
धैर्य सहनशील मृदु भाषी, तेरी सच्ची सरल सूरत है।
ईमानदार और नेक सर्वोत्तम, मां ममता की मूरत है।।
बच्चों पे ये जान छिड़कती, सबको खिला के खाती है।
पूरे घर की रौनक मां ही, सच्ची सीख सिखाती है।।
सूना सारा जग हो जाता, सदा के लिए जब सोती है।
हे! मां वंदन कोटि नमन मां, सदा तूं दिल में ही होती है।।